प्रियतम का पुर, उसके आने की आहट, उससे मिलने की बेचैनी और मिलन का आह्लाद निर्गुण और सगुण संत कवियों के प्रिय विषय रहे हैं। चाहे मीरा का 'सखी मोरी नींद नसानी' हो या 'कोइ कहियो रे प्रभु आवन की', कबीर का 'दुलहिनि गावहु मंगलाचार, हमरे घर आये राजा राम भर्तार' हो या 'नइहरवा हमका न भावे'; अनुभूतियों की गहन पवित्रता साधक, पाठक, गायक और स्रोता सबको दूसरे ही लोक में ले जाती है।
भोजपुरी क्षेत्र के कबीर का 'नइहरवा...' पछाँही और मालवी स्पर्श के कारण अनूठा है।
सुनिये इसे तीन स्वरों में - कुमार गन्धर्व, कैलाश खेर और नवोदित आदित्य राव। कुमार गन्धर्व से प्रेरणा पाते हैं कैलाश खेर और उनके स्वरों को ही आदित्य राव ने दुहराया है।
नइहरवा हम का न भावे, न भावे रे । साई कि नगरी परम अति सुन्दर, जहाँ कोई जाए ना आवे । सुनिये इसे तीन स्वरों में - कुमार गन्धर्व, कैलाश खेर और नवोदित आदित्य राव। कुमार गन्धर्व से प्रेरणा पाते हैं कैलाश खेर और उनके स्वरों को ही आदित्य राव ने दुहराया है।
चाँद सुरज जहाँ, पवन न पानी, कौ संदेस पहुँचावै ।
दरद यह साई को सुनावै … नइहरवा।
आगे चालौ पंथ नहीं सूझे, पीछे दोष लगावै ।
केहि बिधि ससुरे जाऊँ मोरी सजनी, बिरहा जोर जरावे ।
विषै रस नाच नचावे … नइहरवा।
बिन सतगुरु अपनों नहिं कोई, जो यह राह बतावे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, सपने में प्रीतम आवे ।
तपन यह जिया की बुझावे … नइहरवा।
कुमार गन्धर्व
कैलाश खेर
आदित्य राव
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