रविवार, 20 नवंबर 2011

लगती हो


आभार:
 http://www.123rf.com/photo_4644624_indian-girl-catching-her-sari-in-a-bending-posture.html


जो पूछी बताता हूँ
अपनी सुनाता हूँ-
अमराई की पछुआ में
नशा छाँव महुआ में
नमकीन तीते टिकोरे कीखटाई सी लगती हो।

लूह चले चाम पर
परखन नाम पर-
जो दीठ से देखी न जाय
जीभ से कही न जाय
अधकच्चे रसाल कीभावी मिठाई सी लगती हो।

कने कने घाम में
सँवराई सी शाम में-
भटकन न नाप सके
डरा नहीं पाप सके
छूने की चाह जगाती, लजाती ललाई सी लगती हो।
.
.
.
छुट्टियों के दिन बीते
रह गये बखार रीते-
तड़पन जो ला न सकी
नेह लगन पा न सकी
सूने खलिहान लुटी, शहर की कमाई सी लगती हो। 

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों से यह कविता ड्राफ्ट में पड़ी थी। आज दिख गई तो सोचा कि निकाल दूँ। अधूरी सी लगी। पता नहीं किस मन:स्थिति में कब रची गई थी लेकिन आज उदास लगी, ज्यों कसक बाकी रह जाय। अंतिम बन्ध से भी यही लग रहा है।

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  2. मेरी उम्र तक पहुंचेगें तो इस कसक की तासीर और बढ़ जायेगी -अभी भी बहुत उर्जित यौवन शेष है बन्धु!कविता की टीस कलेजे आ लगी है -यह आपकी वह पीड़ा है जो सार्वजनीन होने को लहकती है !

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  3. एक विवाहित पुरूष द्वारा ऐसी कविता तबहीं लिखी जाती है जब या तो श्रीमती जी से किसी बात पर रूठैती चल रही हो और गैलरी में खड़े होकर बाहर का दीदार किया गया हो....अथवा किसी शाम श्रीमती जी बिना नून तेल लकड़ी की बात छेड़े, बिना घरेलू कतर ब्योंत वाली बतकही उभारे अचानक नेह बरसाती लगें :)

    एक तीसरी संभावना भी है लेकिन.....जाण दो....फिर कभी :)

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  4. और हां, कविता एकदम मस्त है...देशज फुलौरी जैसी लहकती चहकती !

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  5. वस्त्रों का सौन्दर्य तो अब तो आधुनिकता में छिपता जा रहा है, यह चित्र कईयों का सौन्दर्यबोध अनुप्राणित कर सके संभवतः।

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  6. भारतीय पारंपरिक परिधान में सजी नारी की सुंदरता को देशज शब्द-बिंबों के माध्यम से खूब अलंकृत किया है आपने। सूने खलिहान लुटी, शहर की कमाई सी लगती हो।..यह पंक्ति सबसे अच्छी लगी।

    पंचम जी की चुटकी को भूल प्रशंसा में रमाइये। एकाध ऐसे डाफ्टस् और पड़े हों तो उसे भी छाप जाइये।

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  7. :)
    [आजकल अपनी टिप्पणियाँ छपने के बाद भी ग़ायब हो जा रही हैं इसलिये उन्हें सन्क्षिप्ततम रखने की कला सीख रहा हूँ, जैसे जेबकतरी के लिये प्रसिद्ध नगरों की भीड़ भरी बस यात्राओंके दौरान बटुए में कम-से-कम पैसे रखने का प्रयास होता था]

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  8. विवाह कर लिजिए अभिसेक बाबू, उसके बाद आप बिना बताये ही समझ जायेंगे :)

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  9. कैसे लिखी जाती हैं ऐसी कविताएं ??

    ......लिखना नहीं है .....बस पूछ रहा हूं...!

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