सर्च के 'फरमान' में जोड़ देना 'तुगलकी'
ईश्वर तब भी मिलेगा - कुछ अधिक ही।
वह योगी अब नहीं रहा जो गाया करता था
"मोको कहाँ ढूँढ़े रे बन्दे! मैं तो तेरे पास में"।
बहुत कष्ट होता है तुम्हें बैन करते हुये यार!
तुम अब ठीक से पढ़ते नहीं या मैं ठीक लिखता नहीं।
बहुत दिनों से पैक रखा है दीवान में बन्द गिटार
बच्चा अब बिना संगीत के ही झूम लेता है।
नर्म गर्मी मेरी पीठ पर अब सवार होती नहीं
हाथों पर अब जुल्फों के फेरे न अश्कों के घेरे।
रिपेयर में गया था कविताओं भरा लैप टॉप
कमबख्तों ने कीबोर्ड ही बदल दिया।
चुम्बन में अधर अब बहकते नहीं, न ढूँढ़ते हैं
दरकार जिसकी थी वह चाहत मिली भी नहीं
यह बात और है कि साँसें धौंकनी हो चली हैं
सलवटें नहीं रहीं सदानीरा, पठारी नदी हो गई हैं।
कहते हैं जवानी चाँदनी सी मद्धम होती जाती है
ठहराव आता है, जिन्दगानी उलझती जाती है
क्या करूँ, जब भी करता हूँ समझदारी की बात
कहीं से शुरू करूँ, वो तुम तक पहुँच जाती है।
अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंजिधर देखूँ फिज़ाँ में रंग मुझको दिखता तेरा है ...
सब कुछ उमड़ता घुमड़ता अन्ततः सागर में ही समाता है।
जवाब देंहटाएंइस फार्मूले को ट्राई मारें -
जवाब देंहटाएंचलो एक बार फिर अजनबी बन जाएँ हम दोनों ..
फिर अधर कुछ और दूर जायेगें कुछ कुच और ढूंढेगा .. मन और लहक उठेगा
(सारी कुच को कुछ पढ़ें :) नहीं ट्रैफिक और भटक भड़क जायेगी!
थैंक गाड-टिप्पणी आप्शन खुला है !
यह समय भी अजीब परिवर्तन ला देता है।
जवाब देंहटाएंभारी उलटफेर की ताकत है इसमें।
समय को कैसे पकड़ें?
मुझे तो लगता है समय कुछ ज्यादा ही तेज चलता है । थोड़ा तो साँस लेता और साँस लेने देता । जब ठहरा ठहरा लगता है तब भी चलता ही रहता है । आस और प्यास भी समय के साथ चलते ही रहते हैं , अमिट ।
जवाब देंहटाएंओहो ! कभी-कभी बड़ा सूक्ष्म ओबजर्वेशन होता है आपका.
जवाब देंहटाएंबात घुमा फिरा कर उस तक पहुच जाना. कुछ बातें सभी के साथ एक जैसी ही होती है :)
वाह ......
जवाब देंहटाएं@"मोको कहाँ ढूँढ़े रे बन्दे! मैं तो तेरे पास में"।
@कमबख्तों ने कीबोर्ड ही बदल दिया।
माना कीबोर्ड बदल दिया, पर दिलों की हलचल वो वही थी.
@कहते हैं जवानी चाँदनी सी मद्धम होती जाती है
सच पूछो तो ४० के बाद.
@क्या करूँ, जब भी करता हूँ समझदारी की बात
कहीं से शुरू करूँ, वो तुम तक पहुँच जाती है।
यही तो अदा है..........
जय राम जी की...... बेहतरीन कविता.
चुम्बन में अधर अब बहकते नहीं, न ढूँढ़ते हैं
जवाब देंहटाएंदरकार जिसकी थी वह चाहत मिली भी नहीं
यह बात और है कि साँसें धौंकनी हो चली हैं
सलवटें नहीं रहीं सदानीरा, पठारी नदी हो गई हैं।
...यह तो गज़ब है।
yahi to zindagi ki khoobsoorati hai...कहीं से शुरू करूँ, वो तुम तक पहुँच जाती है।
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