शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

कृष्ण अस्त्र


कुमुद कौमुदी गदा देवी,
सहस्रार चक्र सु-दर्शन,
वनमृग शृङ्ग शार्ङ्ग चाप,
पाञ्चजन्य पञ्चजन आह्वान -

मैं जीवन में एक बार
केवल एक बार
हुआ स्तब्ध !
कुरु सखी पाञ्चाली विवश
सभा में दिगम्बरा आसन्न,
हाहाकार,
मौन देखते अनर्थ युग के
धर्म और बल धुरन्धर
मौन रह मैं बना अम्बर,
लौटा चुपचाप सत्वर।

उस दिन मेरी वेणु से
टूटा संगीत,
बाँध दिया उससे कषा,
अश्व हाँकने को -
महाविनाश की भूमिका मौन
मैं लौटा था चुपचाप
बाहर भीतर रथचक्र तक
सब स्तब्ध
कर्णमाधुरी हुई नष्ट।
...
हो गया विनाश,
भावी का अङ्कुर हत ब्रह्मशर,
केवल एक बार,
उमड़ी थीं ऊर्मियाँ अनन्त
केवल एक बार,
ली सौंह मैंने, अपने समस्त शुभ कर्म
रख दिये मानो निकष द्यूत पाश।
नवजीवन नवयुग नवनिर्माण
का पहला परीक्षित प्रस्तर
अमृत।
जानते हो?
वेणु भी हुई मुक्त
कषा के हिंस्र काषाय से,
रात भर मैंने बाँसुरी बजायी थी,
और
किसी ने न सुनी !
...
गाया सूतों ने
लिखा लोमहर्षण ने, सौती ने
कोई नहीं सुनता, कोई नहीं सुनता
यद्यपि मैं हाथ उठा उठा कहता।
...
मैं मुस्कुराता रहा वैकुण्ठ से -
रे सूत, वे स्वर मौन
सुनते हैं वे सब
जो रथ हेतु वेणु तजते हैं -
यह पृथ्वी,
ये सूर्य चन्द्र ऐसे ही थोड़े चलते हैं!

कृष्ण वेणु


मनु के जने मुझे सुनते हैं,

और मैं तुम सब को।
बोलो, क्या बजाऊँ?
कालिन्दी की कल कल
या
गइया के दूध की,
गगरी में झर झर?
क्या सुनना है?
कहो, कहो!
कहो न!!