(1)
तुम्हारा कैमरा
कुछ भी कहे
मेरी अंतर्मुखी आँखें कहती हैं
न रोपे होते चाय बगान तो पहाड़ियाँ सुन्दर होतीं
मेरी अंतर्मुखी आँखें कहती हैं
न रोपे होते चाय बगान तो पहाड़ियाँ सुन्दर होतीं
(2)
समझने लगा हूँ
कान्ह तुम्हारा अभिशाप
आज्ञा चक्र का बहता मणि दुर्गन्ध लिये
और मन में धरे अनेक धर्म षड़यंत्र घाव
न थमते अश्व की तरह हजार वर्षों तक
भटकता प्रतिहिंसक मुझमें अमर है!
आज्ञा चक्र का बहता मणि दुर्गन्ध लिये
और मन में धरे अनेक धर्म षड़यंत्र घाव
न थमते अश्व की तरह हजार वर्षों तक
भटकता प्रतिहिंसक मुझमें अमर है!
(3)
जिसे बहलाते हो
पैरासिटामॉल की गोलियाँ दे
वह बच्चा नहीं, नसों में जन्म लेता बुढ़ापा है
वह बच्चा नहीं, नसों में जन्म लेता बुढ़ापा है
(4)
रेमेसिस!
हजारो वर्षों से सोई तुम्हारी ममी की
गलती त्वचा का इलाज यौवन नगरी पेरिस में हुआ
पढ़ कर मैं सोचता हूँ
शरों से भीष्म न छिदे होते, होती जो उनकी ममी
कृष्ण के साथ सोई दिल्ली के किसी संग्रहालय में
गीता के सात सौ क्या तब भी मिलते
एक लखिया महाभारत में?
हजारो वर्षों से सोई तुम्हारी ममी की
गलती त्वचा का इलाज यौवन नगरी पेरिस में हुआ
पढ़ कर मैं सोचता हूँ
शरों से भीष्म न छिदे होते, होती जो उनकी ममी
कृष्ण के साथ सोई दिल्ली के किसी संग्रहालय में
गीता के सात सौ क्या तब भी मिलते
एक लखिया महाभारत में?
(5)
बनारस की बिजली
जैसे
पिटाया बच्चा देर तक रोने के बाद
ठहर ठहर अहके!
पिटाया बच्चा देर तक रोने के बाद
ठहर ठहर अहके!
(6)
न, न हाथ जोड़
यह जो रुख पर आब है, कोई रुहानी नूर नहीं
देह में उफनता अम्ल है जिसकी आग अभुआ रही है
तिल तिल जलन क्षण छन मौत
देह में उफनता अम्ल है जिसकी आग अभुआ रही है
तिल तिल जलन क्षण छन मौत
विविध नहीं - इन्द्रधनुषी छटा बिखेरती ये क्षणिकाएँ!! प्रणाम आचार्यवर!
जवाब देंहटाएंक्षमा याचना सहित
जवाब देंहटाएं१.१ -
तुम्हारी कार कुछ भी कहे
मेरी अंतर्मुखी आँखें कहती हैं
ना बिछायी होती कंक्रीट
तो मैदान सुंदर होते।
१.२ -
तुम्हारी भरी झोली कुछ भी कहे
मेरी अंतर्मुखी आँखें कहतीं हैं
न रोपे होते मल उगलते कारखाने
तो नदियाँ सुंदर होतीं।
१.३ -
तुम्हारा खुदा कुछ भी कहे
मेरी अंतर्मुखी आँखें कहतीं हैं
न बोया होता वैमनस्य
तो जीवन सुंदर होता।