नैहर आने से पहले कुछ बेटियाँ
अब भी लिखती हैं अंतर्देसी चिट्ठियाँ।
बाबा धुलने को दे
देते हैं
गन्दी अपनी धोतियाँ।
मोर्ही वाली छोड़ एक
ग़ायब हो जाती हैं सभी
ताखे पर बिखरी किसिम
किसिम की चुनौटियाँ
मुस्कुराते घूमते हैं
कभी इधर कभी उधर
चुपके चुपके सहेजते हैं कहने को ढेरों कहानियाँ।
ईया गिरते केशों में
फेरने लगती हैं कंघियाँ।
ढील खुजली हेरन बातों में बकबक फेरन को
माज माज मन चमकाती
हैं मन मन भारी गालियाँ
जतन भर सँवारती हैं
टुटहे बक्से में रखे आशीष
लेकिन नहीं भूलती हैं छिपाना अपनी बालियाँ।
ले खरहरा जाला मारें
पापा
झाड़ें खिड़कियाँ।
पिटती है धौंक कुदारी दुअरा पर मोथा छीलन को
उमड़ उछाह देख पलायित बिदाई वाली सिसकियाँ
झोला भर लाते पापड़ चिउड़ा सिरका अमचूर
पूछ पूछ तस्दीकें
घरनी से कैसे बनती हैं मछलियाँ?
पोते चेहरे की झाँइयों पर
छिपा बहुओं से लभलियाँ।
जोर जुटा जमा ठसक हो जाती है जवाँ पुन:
याद दिलाने लगती घरनी सुघर सराही झिड़कियाँ
कड़वी जीभ से परखे सब नकचढ़ ज़िद्दी मोर धिया
छोड़ देती है तवे पर माँ
फुलाना रोटियाँ।
गिनने लगते हैं मनसुख
काका
चेहरे पर की झुर्रियाँ।
खिचड़ी मूँछ आवारा बाल
चुभते हैं आँखों में
बात बेबात हजामत में देने लगते हैं झिड़कियाँ
बारी के सबुजा आम टिकोरे कीमती कचहरी कागद से
काटने को कच्चे कचालू चमकाने लगते हैं छूरियाँ।
सहमने लगती हैं यूँ ही -
ननद के भाइयों से उसकी भाभियाँ
जब पढ़ती हैं चिकोटती सी चिट्ठियाँ।
नैहर आने से पहले कुछ बेटियाँ
अब भी लिखती हैं अंतर्देसी चिट्ठियाँ।