बुधवार, 1 जुलाई 2009

कल

कल मैंने सफर किया
ए सी के बजाय
सामान्य स्लीपर क्लास में।

कल ही एक अर्से के बाद
प्लेटफ़ॉर्म पर खरीदा
ढेर सारी पुस्तकें
बिना पिछ्ले कवर पर
उनके दाम देखे।

कल मैंने एक 'अर्थवान' सफर किया!

10 टिप्‍पणियां:

  1. ये बात हुई न!! अब उन पुस्तकों की समीक्षा और यात्रा वृतांत पर शुरु हो जाओ!!

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  2. अच्छा लगता है कभी कभी बारिश मे भीगना कभी कभी नंगे पाँव मिट्टी पर चलना कभी कभी क्भी खोमचे वाले से काटो माटो ले कर खाना--कभी कुश्टआश्रम मे एक नन्हें से बच्चे की आंम्खों मे झाँकना कभी अपने गांम्व की कच्ची गलियों मे भटक कर बेर जामुन के पेड ढूँढ्ना---वो झूले और चरखे की गूँज को सुनने की बेकार कोशिश करना
    और कभी कभी---ये सब खुद मे लौट आने का एक सबब होता है जिसे हम कभी कभी ही पहचान पाते हैं बहुत सुन्दर आभार्

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  3. mujhe bhi achchaa laga ki aap ek arthwan safar kiye......our hamesha aise hi karate rahe ................aapke jiwan ka safar nek our kisi achchhe udeshya ke liye ho ............aamin ............achchhi lagi poem...

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  4. mai bhi chahata hu ki aapka safar aisaa hi jaaye taumra din dunna rat chouguna...............

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  5. भावों की सुन्दरतम प्रस्तुति.......बहुत बहुत बधाई....
    एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....

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  6. आज आपके ब्लॉग पर आकर मुझे भी लगा एक अर्थवान सफ़र हुआ.

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  7. क्या कहते हैं उसे, डी-क्लास होना....शायद यही...
    और दूसरा खरीद कर पढ़ना...

    दो-दो पुण्य एक साथ...

    अच्छी लगी पंक्तियां, इन इशारों के साथ..

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  8. ‘अर्थवान’।
    काफ़ी अर्थ छिपे हैं आपकी इस कविता में।
    उनका जिक्र उनके प्रभाव की गहराई को कम करना होगा।

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  9. वाह जी ....ऐसे अर्थवान सफ़र आप और भी करें ....!!!

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