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मंगलवार, 3 नवंबर 2009

...होनी चाहिए


तुम आओ, न आओ घर हमारे - हम तो हर पल अगोरेंगे                  
बची तुम्हारे जेहन में, हमारी यादों की सौगात होनी चाहिए।


न आई तुम, पूछा किए भोर से, उषा से, चमकते आफताब से
शाम रुसवा हुई, खत से जाना कि मिलन की रात होनी चाहिए।


धौकनी बन गई साँसें, आँच निकले है जैसे गरम रोटी से
बुझा चूल्हा, कहीं किनारे अँसुअन भरी परात होनी चाहिए।  


बाहर मची है अन्धेरगर्दी, न कोसो आइने से मुखातिब हो
पहले गली में, नुक्कड़ पर, निकलने की औकात होनी चाहिए।


देखा है सुना है, मचल जाते हैं तुम्हारे असआर बाहर आने को
हवा में उछालने से पहले, जुमले की मालूमात होनी चाहिए।


वजह जगह भले अलहदा, सड़क पर हो राशन की लाइन में हो
कहीं भी कैसे भी हो, जरूरी है मेरे दोस्त, बात होनी चाहिए।