बुधवार, 7 सितंबर 2016

नयन माँ के

नयन माँ के
हर पल थामे
भीत,
लिखा जिस पर
पिता का जाना -
अदृश्य मसि।

अंधेरे से भी
झाँकती है
हार,
पीर
दो थके नयनों की।

सपाट मुख
स्थायी भाव
विवर्ण हम
सो नहीं पाते
रो नहीं पाते।

प्रात: दिलासा देती है माँ
जाने दो, ठीक ही हुआ
मत सोचो..

और मुझे पता चलता है
अमा की रात
ओस झुलसी आग
कैसे शीतल होती है।

ताकने लगता हूँ आकाश
कि
उमड़े जो, थमे रहें
छिप जांय...
... माँ जाने कौन सा नया बोझ
नई हार
और पिरो लेगी आँखों में
बहें तो बहें
बस दिखें न।