सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

गिनती


पर्व आया, चला गया
बच्चे आये, चले गये
हरसिंगार रह गया बाकी।
दुआर पर दो वृद्ध अकेले,
फिर से गिनने लगे हैं -
टूटती साँसें, पूजा के फूल।

शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

तिक्की

पढ़ पाओगे मुझको अधूरा हूँ मैं? 
धैर्य तुममें नहीं जल्दी मुझको नहीं।

अपनी बातों के आगे हूँ चुप मैं बहुत 
चैन उनमें नहीं शब्द मुझमें नहीं।

तुम्हारी मुहब्बत सजदा हमारा
बस इबादत कहीं खुदाई कहीं।

बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

देती है


धड़कनों में जान सुनाई देती है 
आहट-ए-रैहान * सुनाई देती है। 

मत बढ़ो आगे अब गलबहियों से
हुस्न सजी दुकान दिखाई देती है।

जुटने लगे कत्ल के सामान सब 
लबों पर मुस्कान दिखाई देती है।

आजिजी आमद किनारे खुदकुशी
मौत कुछ परेशान दिखाई देती है। 

बढ़ गये हैं शहर में काफिर बहुत
हर तरफ अजान सुनाई देती है।
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*रैहान - स्वर्ग की सुगन्ध