बुधवार, 8 अगस्त 2012

सुरत हँसी, विरत हँसी

उमसा उमसा 
समय सूखी नदी सा
रहे केवल तट मना रे
दिन सहमा सहमा। 
दो किनारे 
सीमाहीन शुष्क 
जीवन रेत मचल उठी 
फिसल न जाय! 
आतप श्वास लिप्त तप्त 
रेत धधक उठी 
मकई दानों की लड़ी झड़ी 
तुम्हारी सुरत हँसी।
भूख सोंधी सजल तृप्त 
पिघले तट सरि के
नदिया बह चली 
तुम्हारी विरत हँसी। 
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चित्राभार: http://www.flickriver.com/photos/tags/noordhoekbeach/interesting/

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