वक़्त वक़्त की बात
कहीं से उठता है धुँआ
यूँ ही ढाँढ़स देने को
जला दी गयी घुन खाई लकड़ियों से।
अन्नपूर्णा के खाली भंडार
बरतनों में बजते हैं
भूख बुझती नहीं
पानी पेट मरोड़ता है।
बुझती है आँसुओं से आग
पेट की,मन की -
कवि रचता है
बड़वाग्नि उपमा उपमान।
कहीं से उठता है धुँआ
यूँ ही ढाँढ़स देने को
जला दी गयी घुन खाई लकड़ियों से।
अन्नपूर्णा के खाली भंडार
बरतनों में बजते हैं
भूख बुझती नहीं
पानी पेट मरोड़ता है।
बुझती है आँसुओं से आग
पेट की,मन की -
कवि रचता है
बड़वाग्नि उपमा उपमान।