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गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

तुम्हारी लम्बी बीमारी

(1) 
तुम्हारी लम्बी बीमारी 
अरगनी पर टँगे सूखते सूखे कपड़ों सी।
नहीं हटा पाया उन्हें, भीगने भिगोने का डर है।

(2) 
कपड़ों में भीनी ओस
रोज उड़ जाती है गुनगुनी धूप में ही।
कोई ठौर नहीं, मेरे आँसू बस उमड़ते रहते हैं।   

(3) 
तुम पूछने लगी हो अब
रोटियाँ नमकीन क्यों लगती हैं?
क्या कहूँ? आँसू बस रसोई में बरसते हैं!