शनिवार, 31 मार्च 2012

गुंजलक


शुभकामना सन्देश स्पैम बॉक्स में संख्या बढ़ाते हैं
स्वयं नहीं जाते तो भेज देता हूँ और सहमता हूँ
कहीं कोई सच्चा सन्देश तो नहीं चला गया उधर?
कहीं किसी शुभ की हत्या तो नहीं कर दी मैंने?

क्या करूँ कि मुझे सड़कों पर रोजमर्रा की वहशत दिखाई देती है?  
क्या करूँ कि मुझे सड़कों पर रोजमर्रा की दहशत दिखाई देती है?  
मैं क्या करूँ कि मेरे हाथ कई दिनों तक हटाते रहते हैं वह पत्थर
जिसे सड़क पर छोड़ दिया था किसी ने टायर बदलने के बाद?
मैं क्या करूँ कि होता रहता है हमेशा एहसास
कि मेरी ज़िन्दगी में कोई स्टेपनी नहीं -  
खुद को देखता हूँ हजारो हजार सड़क भर भटकते।
क्या करूँ कि मुझे हो गई है स्थायी झुँझलाहट –
पत्थर उठा कर उस एस यू वी का नहीं तोड़ा कोई काँच एक?
स्याह शीशों के पीछे छिपे काले गुमनाम नामवर चेहरे
मुझे घूरते रहते हैं और मैं उन्हें देख तक नहीं पाता
मेरा संतुलन बिगड़ गया है,
क्या करूँ कि मुझे हमेशा चक्कर रहने लगे हैं? 

मैं वह अकेला हूँ जिस पर अनुग्रह यूँ ही नहीं बरसते।
जब हजार लोगों की जमीन कब्जा होती है
जब बनता है दूसरे हजार लोगों की मौज को एक माल
तो मुझ पर गिरता है एक अनुग्रह।
गन्दी गली का मेरा मकान
अचानक ही राजमार्ग पर आ जाता है।
छत दबाती है मुझे, दीवारें सिकुड़ कर पीसती हैं
राजमार्ग के शोर से मेरी नींद हवा हो जाती है
मैं अचानक ही वी आई पी हो जाता हूँ -  
मुहल्ले में पहले से और अकेला।
मेरे संगी हजार लोग हैं कोर्ट की फाइलों में पीलिया ग्रस्त
मैं रोगी हो गया हूँ।  

मंगलवार, 6 मार्च 2012

नाम..

नामपर नामसर नामचर नामखर 
नामभर नाममर नामोखर नामधर
नामखा नामपा नामआ नामजा
नामसा नामका नामभर नामकर
नामचा नामची नामसू नामभू
नामतू नामऊ नामफर नामतर
नामधा नामदान नाबदान नामपर  
नामकी नामड़ा नामजी नाममर 
नामगा नामरो नामपोछ नामदो 
नामधो नामगू नामधाम नामसो। 

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

भाग गई


सुबह उठा तो आँखें लाल थीं,  
रात चूमा था तुमने, 
सपने की पलकों को!

अलसाई सी उठी, 
पकड़ी गई सोते साथ में, 
 नींद लजाई और भाग गई।