शनिवार, 23 नवंबर 2013

हुई लाल!



साँझ को 
निशा निमंत्रण 


सूरज ने फेरा हाथ 
गोरी गंगा लाज 

हुई लाल! 

रविवार, 10 नवंबर 2013

आवश्यक है रचना

आवश्यक है रचना एक शृंगार कविता 
तुम्हारी कमर सीधी करती भंगिमा पर
जैसे आवश्यक है तुम्हारा मुस्कुराना 
ऐनक काँच जमी मेरी अंगुलियों पर 
ये दवा हैं उस रोग की जिसे आयु कहते हैं 
आयु देह की नहीं, आयु मन की नहीं 
आयु प्रेम की जिसकी हर साँस पहरे हैं - 
वाद के, कृत्रिम उपचार के, कथित यथार्थ के
आवश्यक है झूठ होना, दुखना, दुखाना
इस युग तो सही सुख की बातें सभी करते हैं!