रविवार, 23 फ़रवरी 2014

फूट पड़ो



अपनी बातों से
कुरेदता हूँ
कि तुम उठो!
नहीं,
फूट पड़ो
भँड़सार की जलती रेत से
उछलते मकई के दाने की तरह!
मुझे तुम्हें शुभ्र तप्त होते देखना है
जैसे कि पीताभ
मार्तण्ड होता है।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

टँगी

टँगी है ठिठुरन
वसंत में भीगती
पत्ती के सूखे गात से - 
उतार लूँ 
ओढ़ सकूँ 
तो कविता बने!