मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

नजर पिचकारी

फेर दो रे साजन नजर पिचकारी
न समझो मैं कारी
चढ़ जाएगी सारी नजर पिचकारी।

दाल में नमक ननदिया छिनारी
बिष बढ़ाई बाति महतारी पे डारी
न समझो मैं कारी।

मटकी थी भारी दही छलकी अनारी
सासु गारी दिहिन न सहाया मैं नारी
न समझो मैं कारी।

मेह ढलका नहीं मोरि अँखियाँ सकारी
जोत इनमें बसी तोरी नेहिया सँभारी
न समझो मैं कारी।

फेर दो न साजन नजर पिचकारी
चढ़ जाएगी सारी नजर पिचकारी। 

11 टिप्‍पणियां:

  1. नजर भर भर भर रंग मारी पिचकारी वाह क्या बात है अच्छी रचना . बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. नजर भर भर रंग मारी पिचकारी वाह क्या बात है अच्छी रचना . बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. मुझे समझ में तो कम ही आया , हाँ पढने में बहुत अच्छा लगा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. नज़र का ही तो खेल है.....नजर की पिचकारी ने जाने कितने शेर को ढेर किया है....नजर की पिचकारी की मार से जो बचा वो क्या जिया

    जवाब देंहटाएं
  5. फेर दो ना सजन नजरिया पिचकारी..
    जो चढ़ जइहे रंग तो
    लजई के मैं जाउंगी मारी..
    दौड़े आवेंगे ओझा..
    दौड़े आवें पुजारी..
    जो इकबारी मोको लागी
    नजरिया तोहारी..
    करी लाख जतनवा..
    पै ना जइहे
    नजरिया उतारी....
    फेर दो ना सजन..

    जुगलबंदी.. :) हा हा हा..

    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

    जवाब देंहटाएं
  6. फेर दो न साजन नजर पिचकारी…
    वाह! पहली पंक्ति में ही पूरा रस/पूरी कविता

    जवाब देंहटाएं
  7. फेर दो रे साजन नजर पिचकारी
    न समझो मैं कारी
    चढ़ जाएगी सारी नजर पिचकारी।
    तोरी नजरिया मतवारी
    रंग डारी सारी अनारी
    कौन रंग पिचकारी
    हम भई सांवरी सकारी
    अद्भुत !! कविताई रचाई है...
    कहाँ से ई भाव जोगाई है
    हाव-भाव मनवा लुभाई है
    नयनन से होरी खेलाई है ...

    जवाब देंहटाएं
  8. कभी करारा कभी करारी
    होरी में कान्हां संग सूरदास ने डारी
    नज़र पिचकारी.

    जवाब देंहटाएं