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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

नजर पिचकारी

फेर दो रे साजन नजर पिचकारी
न समझो मैं कारी
चढ़ जाएगी सारी नजर पिचकारी।

दाल में नमक ननदिया छिनारी
बिष बढ़ाई बाति महतारी पे डारी
न समझो मैं कारी।

मटकी थी भारी दही छलकी अनारी
सासु गारी दिहिन न सहाया मैं नारी
न समझो मैं कारी।

मेह ढलका नहीं मोरि अँखियाँ सकारी
जोत इनमें बसी तोरी नेहिया सँभारी
न समझो मैं कारी।

फेर दो न साजन नजर पिचकारी
चढ़ जाएगी सारी नजर पिचकारी।