जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
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बुधवार, 15 अगस्त 2012
अमर वैभव
शब्दचिह्न :
15 अगस्त,
ज़िहादी इस्लाम की काली करतूतें
रविवार, 15 अगस्त 2010
उरूजे क़ामयाबी पर ... जहाँ सेंध लगती है।
15 अगस्त 1947 से पहले किसी दिन
उरूजे क़ामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सय्याद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।
चखायेंगे मज़ा बरबादिए गुलशन का गलची को
बहार आ जायेगी उस दिन जब अपना बागवाँ होगा।
ऐ दर्दे वतन हरगिज जुदा मत हो मेरे पहलू से
न जाने वादे मुरदिन मैं कहाँ और तू कहाँ होगा।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहाँ होगा।
शहीदों के मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
(अशफाक उल्ला खाँ, 18 दिसम्बर 1927, फाँसी से एक दिन पहले ?)
____________________________________________
15 अगस्त 1947 के बाद किसी दिन
भारत -
मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द
जहाँ कभी भी प्रयोग किया जाए
बाकी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं।
इस शब्द के अर्थ
खेतों के उन बेटों में हैं
जो आज भी वृक्ष की परछाइयों से
वक़्त मापते हैं।
उनके पास, सिवाय पेट के
कोई समस्या नहीं
और वह भूख लगने पर
अपने अंग भी चबा सकते हैं।
उनके लिए ज़िन्दगी एक परम्परा है
और मौत के अर्थ हैं मुक्ति
जब भी कोई समूचे भारत की
'राष्ट्रीय एकता' की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है -
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ।
उसे बताऊँ
कि भारत के अर्थ
किसी दुष्यंत से सम्बन्धित नहीं
वरन खेतों में दायर हैं
जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगती है।
(अवतार सिंह सन्धू 'पाश', प्रथम काव्य संग्रह 'लौहकथा' से)
उरूजे क़ामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सय्याद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।
चखायेंगे मज़ा बरबादिए गुलशन का गलची को
बहार आ जायेगी उस दिन जब अपना बागवाँ होगा।
ऐ दर्दे वतन हरगिज जुदा मत हो मेरे पहलू से
न जाने वादे मुरदिन मैं कहाँ और तू कहाँ होगा।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहाँ होगा।
शहीदों के मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
(अशफाक उल्ला खाँ, 18 दिसम्बर 1927, फाँसी से एक दिन पहले ?)
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15 अगस्त 1947 के बाद किसी दिन
भारत -
मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द
जहाँ कभी भी प्रयोग किया जाए
बाकी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं।
इस शब्द के अर्थ
खेतों के उन बेटों में हैं
जो आज भी वृक्ष की परछाइयों से
वक़्त मापते हैं।
उनके पास, सिवाय पेट के
कोई समस्या नहीं
और वह भूख लगने पर
अपने अंग भी चबा सकते हैं।
उनके लिए ज़िन्दगी एक परम्परा है
और मौत के अर्थ हैं मुक्ति
जब भी कोई समूचे भारत की
'राष्ट्रीय एकता' की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है -
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ।
उसे बताऊँ
कि भारत के अर्थ
किसी दुष्यंत से सम्बन्धित नहीं
वरन खेतों में दायर हैं
जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगती है।
(अवतार सिंह सन्धू 'पाश', प्रथम काव्य संग्रह 'लौहकथा' से)
शब्दचिह्न :
15 अगस्त,
अवतार सिंह संधू 'पाश',
अशफाक उल्ला खाँ
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