(1)
फागुन ने चूमा
धरती को -
होठ सलवट
भरा रास रस।
भिनसारे पवन
पी गया चुपके से -
.. खुलने लगे
घरों के पिछ्ले द्वार ।
(2)
फागुन की सिहरन
छ्न्दबद्ध कर दूँ !
कैसे ?
क्षीण कटि -
गढ़न जो लचकी ..
कलम रुक गई।
(3)
तूलिका उठाई -
कागद कोरे
पूनम फेर दूँ।
अंगुलियाँ घूमीं
उतरी सद्यस्नाता -
बेबस फागुन के आगे।
(4)
फागुन उसाँस भरा
तुम्हारी गोलाइयों ने -
मैं दंग देखता रहा
और
मेरी नागरी कोहना गई ।
लिखूँगा कुछ दिन
अब बस रोमन में -