सोमवार, 3 दिसंबर 2012

राग घरनी

नत ललाट पर बिखरी अलकें
प्राची में सिन्दूर लगे
नयन सरोवर पुरइन भँवरे
कपोल पराग छू छिड़क भगे
हाथों के अर्घ्य अमर 
जूठे बासन धो गंगाजल
अन्न अग्नि आहुति सहेज 
चूड़ियों ने कुछ सूक्त पढ़े।

नेह समर्पण भावों का ज्यों
मिथकों के अम्बार गढ़े
रुँधे गले कुछ कह न पाये
मौन शब्द आभार पढ़े
ओस सजी दूब फिसलती
आँखों में आराधन है
क्षितिज मिलन के नव्य मधुर
साँसों में ओंकार जगे।
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एक रंग यह भी: 

भोजन छ्न्द 

6 टिप्‍पणियां:

  1. लोगो ने प्रेमिकाओं पर तो अनगिनत लिखे, घरनियाँ रह जाती है ..
    अनुपम !

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    1. @ वाणी जी ,
      कवि ने, चूड़ियां पहनाई हैं, साँसों में ओंकार जगाया और नत ललाट में सिन्दूर लगाया तो है :)

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  2. वहीं क्षितिज पर, लाल प्रभा में, निशा दिवस का संगम हो,
    धरा गगन का मेल प्रतीक्षित, साक्षी पाथर, अब नम हो।

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  3. अहो - कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं । घरनी को इतनी सुन्दर कविता - आँखें भर आई हैं कविवर :)

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  4. सुन कर गुन कर चुप चाप रहा
    कुछ भी न कहा - न अहो, न अहा!
    - निराला :)

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  5. मौन मन मथता रहा
    क्या-क्या नहीं सहा!

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