मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

बस यूँ ही बुद्धू बने रहना

वंचना जग की प्रवृत्ति,
घोर अनास्था पैठ रही। 

सच का है कड़वा स्वाद, तड़का तराशें और परोसें 
झूठ गली का सोंधा माल, चटकारे ले सभी भकोसें। 
किंशुक फूले, फूले गुलमोहर, छतनार हुई गाछों की डालें 
चक्र सनातन घूमे अविरत, कौन घड़ी हम बन्धन बाँधें? 

श्लथ छ्न्द अनुशासन, गण अगणित, टूटें क्षण क्षण। 
रह रह समेटना, गिरना,रह रह उठना।

नहीं, तुम्हारा प्रिय नहीं पराजित।
ढूँढ़ता है इस मौसम 
होठों पर खिलते हरसिंगार 
सरल अंत:पुर शृंगार 
भाषित सुगन्ध सदाचार
प्रेमिल वाणी निश्छल 
मौन सामने साँसें प्रगल्भ -  
"ऐसे ही रहना बुद्धू! 
मर कर होते विलीन 
सब भूत लीन  
नश्वरता संहार 
अन्याय अत्याचार 
सब सही। 
सोचो तो 
तुम कहाँ पाते ठाँव 
जो मैं न होती?
सोचो तो 
कौन करता आराधन 
इस भोली अनुरागिनी का 
जो तुम न होते?"  
- क्या यह बस मुग्ध प्रलाप?- 
"नहीं, यह है विस्मृति 
जिसे तुम कहते स्मृति।
भूले जीवन श्वेत श्याम 
द्वन्द्व प्राण का पहला नाम। 
देखो! मैं बिखरी अब ओर 
देखो! तुम बिखरे सब ओर  
टूटे क्षण नहीं, मुझे समेटो 
हरसिंगार हैं हर पल झरते
कुचल गये जो, निज को समेटो।
क्या समझाना? 
अब तो मैं हुई बड़ी 
क्या समझना? 
अब तो तुम हुये बड़े?
विस्मृति ही सही 
बस यूँ ही स्मृति में लाते रहना।
स्मृति ही सही 
बस यूँ ही बुद्धू बने रहना।"

8 टिप्‍पणियां:

  1. सच का है कड़वा स्वाद, तड़का तराशें और परोसें
    झूठ गली का सोंधा माल, चटकारे ले सभी भकोसें।
    किंशुक फूले, फूले गुलमोहर, छतनार हुई गाछों की डालें
    चक्र सनातन घूमे अविरत, कौन घड़ी हम बन्धन बाँधे?

    ...बेहतरीन! अभी इसी पर मुग्ध हूँ..शेष फुर्सत में।

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  2. बहुत सुन्दर रचना है, आनंद आ गया

    एक सुझाव है, टैग लगाते समय मेजर टैग का ध्यान रखें, जैसे कि इस कविता में आपने "प्रेम कविता" तथा "प्रेमकविता" टैग का प्रयोग किया है तो इसका मेजर टैग हुआ "कविता", "कविता" मेजर टैग को भी जरूर लिखें यह कई मायनों में फायदेमंद है

    अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!

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  3. बहुत डूब कर लिखा है...
    बिलकुल सरिता सी बहती हुई कविता

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  4. “विस्मृति ही सही
    बस यूँ ही स्मृति में लाते रहना।
    स्मृति ही सही
    बस यूँ ही बुद्धू बने रहना।”

    स्मृति को शब्द देने की कला कोई आपसे सीखे।
    स्मृति से सृजन हो रहा है कि स्मृति का...

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  5. सच का कडवा स्वाद ...
    झूठ गली का सौंधा माल ...
    सत्य और झूठ का नीर- क्षीर विभाजन ...

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  6. सच का है कड़वा स्वाद, तड़का तराशें और परोसें
    झूठ गली का सोंधा माल, चटकारे ले सभी भकोसें। --

    जाने कैसे आ पहुँचे यहाँ.... मीठा सच है कि आपकी यह रचना कड़वे सच को बयाँ करती असर कर गई...

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