मंगलवार, 23 नवंबर 2010

मौन कौन?

कवियों के गीत 
प्रियतम रूप। 
सराहोगी? 
मेरा मौन! 

धरा ने बुलाया
और सिमट गई।
पुकार पुकार 
थका आसमान
फिर बरस पड़ा। 
बोल सकता हूँ,
बरस नहीं सकता।
तुम कम से कम 
पूछ तो लेना - 
आया कौन?

काँच की खिड़कियाँ 
अब एकतरफा हैं
तुम आर पार देख सको 
मैं नहीं।
क्यों गीत गाऊँ? 
मैं स्वयं तो मधुर 
पर तुम्हारे लिए 
बस हिलते होठ 
मौन।

रेस्ट्रॉं में रश है 
कशमकश है। 
जिस टेबल पर 
तनहाई है
रात घिर आई है।
सर सर छुवन 
चटकी है अगन 
कपड़ों में।
बैठने पर 
न पूछा करो मुझसे -  
सिंथेटिक कौन? 

वह खिलखिल 
वह अदा 
हँसना बेबात 
सुबकना  
बिना बात। 
चुप रहा बहुत 
जब बोलने लगूँ 
वैसी ही रहना।
न न्यौतना - 
मौन।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर! मौन तो हिरण्मयी भी होता है और मोक्षकारी भी।

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  2. मौन को कई रंगों में अभिव्यक्त किया है कि अब आपके मौन में शब्द गूँजने लगे हैं।

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  3. मौन को मुखरित करती सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  4. बोल सकता हूँ,
    बरस नहीं सकता।
    तुम कम से कम
    पूछ तो लेना -
    आया कौन?

    ..अद्भुत !

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