रविवार, 22 अगस्त 2010

आज मैंने कलाई पर क्रॉस बनाया है।

मेरे कानों में तुमने कभी फुरफुरी नहीं की
मेरे सिर से
वो जुएँ जो थे ही नहीं,
तुमने नहीं निकाले।
कभी तुम्हारी चोटी पकड़ नहीं खींचा
और न संग संग अमिया खाए।
मेरी अनाम दीदी!
बरसों बाद आज
तुम्हें याद किया है।
पुराने रिश्तों की चुभन का मौसम है
दीदी, तुम्हें याद किया है।

सरकारी स्वास्थ्यकेन्द्र पर
वह हमारा मिलना पहली बार!
मुझे लिपटा लिया तुमने अचानक
सब हुए थे हक्का बक्का।
सिर को चूमने के बाद
सीने पर क्रॉस बनाने के बाद
पर्स से निकाल सबको तुमने एक फोटो दिखाई थी -
मेरा थॉमस है
देखो! बिल्कुल ऐसा ही है।
सबको अचरज हुआ था।

और बढ़ता गया तुम्हारा बहनापा
टिफिन के समय मैं भाग कर आता
चट करता तुम्हारी बनाई कुकीज
और अनाम व्यञ्जन।
चुपचाप तुम निहारती रहती
फिर धीरे से आँखें पोंछ कर कहती
"आज श्रीकांत बहुत अच्छा खेला।
तुमने सुना क्या?"
मैं मुँह खोलता और गावस्कर की बात करता।
तुम गुस्सा हो जाती
और मैं भागता कपिलदेव की गेंद सा।

यूँ ही दिन उड़ गए
केरल का परवाना तुम्हारे  हाथों में था
उस दिन तुम बहुत खुश थी
तुम्हारे जाने की बात पर जब मैं चुप हुआ था
तुमने मेरी कलाई पर क्रॉस बनाया
"देखो, इसमें दो लाइने हैं
एक थॉमस है और एक तुम।
बस ऐसे ही याद कर लिया करना
याद करने को बहाने आ ही जाते हैं।"

मैं भूलता चला गया।
कभी कभार खबर मिलती
कि तुमने मेरा हाल पुछवाया है
लेकिन मैंने कभी तुम्हें सन्देश नहीं भेजा।
इंजीनियरिंग में चयन के हफ्ते भर में
तुम्हारी खुशी, तुम्हारी शुभकामना का
सन्देशा आया था -
बस वह आखिरी था।

आज वर्षों बाद तुम क्यों याद आई?
अनाम दीदी!
तुम्हारा नाम तक याद नहीं रहा
कहीं ग्लानि है, गहरी सी ।

आज समझ में आया है -
तुम्हारे जाने के बाद
क्रिकेट कमेंट्री सुनना मैंने क्यों छोड़ा था ?

आज तुम्हारे बारे में लिखते
न छ्न्द हैं, न शिल्प है, न शब्द हैं
अलंकार, बिम्ब, प्रतीक कुछ नहीं
सपाटबयानी है।
पर मेरे लिए यह कविता है-
अनाम।

कहीं क्षीण सी आस है
शायद तुम इसे पढ़ पाओ -
केरल में हिन्दी साइट?
तुम इंटरनेट पर आती भी हो?
सवाल बेमानी हैं
मुझे चमत्कार की प्रतीक्षा है।

आज पहली बार
पहली बार
मैंने  कलाई पर क्रॉस बनाया है।

19 टिप्‍पणियां:

  1. बस उसी कलाई पर अनाम की और से एक राखी बांध जाय तो स्नेह सूत्र अमरता का हो जाय

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  2. आपकी कविता पढ़ उन सम्बन्धों के प्रति आस्था प्रगाढ़ हो गयी जिसमें थामस और गिरिजेश अपनी बहना के हृदय में साथ साथ रहते हैं। भगवान करे आपकी बहना आपकी बात सुन ले और ऐसी बहना सबके भाग्योदय में हो।

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  3. बड़ी भावनात्मक रचना. मन में समा गयी.

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  4. .
    .
    .
    यह क्या देव ?
    सेंटिया दिया सुबह सुबह...


    ...

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  5. आज तुम्हारे बारे में लिखते
    न छ्न्द हैं, न शिल्प है, न शब्द हैं
    अलंकार, बिम्ब, प्रतीक कुछ नहीं

    बिना शिल्प, बिना छन्द, बिना शब्द के जो एहसास प्रवाहित हो रहे हैं .. उसके लिये भी शब्द नहीं हैं और सिर्फ एक ही शब्द है 'लाजवाब'

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  6. अतीत की स्मृतियां सदैव अविस्मरणीय होती हैं ...।
    मैं भी सहमत हूं अरविंद सर से...!
    गहरे भावबोध । आभार...!

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  7. सवाल बेमानी हैं
    मुझे चमत्कार की प्रतीक्षा है।

    अद्वितीय रचना! एक चमत्कार तो हो गया है, दूसरा भी हो ही जाये तो खूब रहे!

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  8. सुन्दर भावनात्मक...
    दिल से निकली हुई ...
    बहुत सुन्दर.......

    चमत्कार जरुर होगा कोशिश कीजिये !

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  9. सरजी,
    दिल को छू गई है आपकी प्रस्तुति।

    आभार स्वीकार करें।

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  10. नाम भूल जाते हैं मगर अनाम रिश्तों की मिठास बची रहती है ...
    जाति ,धर्म की सीमाओं से ऊपर ...
    बिना रखी बांधे भी जुड़ जाता है भाई बहन सा ही रिश्ता ..!

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  11. समय परिवर्तन के नियम से बंधा हुआ है...
    हां अपनी अमिट स्मृतियां ज़रूर छोड़ जाता है...
    वक़्त की अनमोल धरोहर को कितने सुन्दर शब्दों में प्रस्तुत किया है आपने...बधाई.

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  12. अद्‍भुत कविता सर...अनाम-सी!

    कपिलदेव के गेंद से भागने वाले बिम्ब ने चित्त कर दिया....लाजवाब।

    उस अनाम दीदी को हमारा नमन कि इतनी बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली हमें।

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  13. झिलमिलाती आँखों से इस कैसे पढ़ा ,मैं ही जानती हूँ ...
    शिल्प विल्प का यहाँ क्या काम जब भाव ह्रदय से प्रवाहित हो इस तरह ह्रदय तक ढरक जाए ??

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  14. मौन हूँ .... कोई ऐसा ही अनाम रिश्ता याद आ गया .... खोजना है उसे भी .... मिलना है एक बार ...

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  15. देखती हूँ तीन बरस पुरानी कविता है। मिलीं आपकी दीदी ?

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