शनिवार, 8 मई 2010

रैना दी ने ठोंक सुलाया ।

बारिश अम्मा ने नहलाया
दिन हुआ दिगम्बर धुला धुला
जागे लोगों के कपड़े पहने
 सूरज संग स्कूल चला।

हँसी ठिठोली बाँह मरोड़ी
आसमान सूरज चढ़ धाया
कुट्टी कर ली दिन गुस्साया
छाँह किताबें पटक चला।

सूरज झाँके दिन भी ताके
हवा लाल के बँटे बतासे
भर भर पेट दिन ने खाया
हँसा, सूरज को कुढ़ता पाया।

ढली दुपहरी सूरज उतरा
पेंड़ फुनगियाँ फलती अमियाँ  
यारी जुड़ गइ कुट्टी तोड़ी
दोनों ने जब खट्टी पाया।

थके पाँव कपड़े हैं मैले
छाँह किताबें लाद आ गए
संझा दादी की झिड़क सुनी
रैना दी ने ठोंक सुलाया ।   

15 टिप्‍पणियां:

  1. संझा दादी की झिड़क सुनी
    रैना दी ने ठोंक सुलाया ...
    सूरज ने क्या क्या रंग दिखाए ...कभी कुट्टी कभी यारी ...
    मगर पड़ी रैना दी सब पर भारी ...
    वाह ...!!

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  2. कुट्टी कर ली दिन गुस्साया
    छाँह किताबें पटक चला।

    बहुत खूब।

    सुंदर भाव और सुंदर कविता।

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  3. सूर्य हमारी दिनचर्या तय करता है। यह बात शायद हम माँ की गोद में ही सीख जाते हैं।

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  4. @ संझा दादी की झिड़क सुनी
    रैना दी ने ठोंक सुलाया ।
    --------- यही रैना दी प्यारे - डरावने - मुस्काऊ सपने भी
    दिखवाती हैं !
    लीजिये आप भी ठोंकक नींद !
    मठल्लो कविता ! आभार !

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  5. waah rochak aur sukh ka anubhav karane wali rachna...kitna badhuya manvikaran kiya...masoom sa...

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  7. बहुत खुब जी, बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता

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  8. एक बेहतरीन बाल- कविता...
    बड़ों के कान उमेठती.....

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  9. पता नहीं हमरी टिप्पणी कठे गी...
    बड़ो के कान उमेठती...प्यारी सी बाल-कविता.....

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  10. बहुत प्यारी क्यूट सी कविता.. बहुत पसन्द आयी..

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  11. यह रूप जमा ! सहज कविताई करते हैं तो रचना तो क्यूट आती ही है..आप भी क्यूट लगने लगते हैं !

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