जो दूसरों की हैं, कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं, '-' रिक्ति में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या रिक्त ही रहे; चिन्ता नहीं। ... प्रवाह को शब्द भर दे देता हूँ।
सौन्दर्य कविता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सौन्दर्य कविता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रविवार, 22 अप्रैल 2012
रूप और प्रात, दुपहर, साँझ, रात
गुरुवार, 26 नवंबर 2009
तन धन ...अकिञ्चन
यौवन
तन धन
सजे
सन सन।
शोर शोख
बरजोर बार,
बार लेकिन
कानों में कन कन
तन धन
बजे घन घन।
आँख डोर
बहकन
मन पतंग
तड़पन।
उठन शहर भर
नीक लगत
हवा पर
विचरण
लहकन
तन धन
बिखर छम थम।
लुनाई -
साँवरा बदन
कपोल लाल
अधपके जामुन
रस टपकन
अधर मधुर
मधु भर भर
कान लोर
लाल
शरम रम रम
तन धन
सिमट
कहर बन शबनम।
देह
द्वै कुम्भ काम
दृग विचरें
सप्तधाम
कटि कुलीन
नितम्ब पीन
उतरे क्षीण
जैसे
पश्चात मिलन
पतली पीर
सिमटन
तन धन
...
...
धत्त अकिंचन !
तन धन
सजे
सन सन।
शोर शोख
बरजोर बार,
बार लेकिन
कानों में कन कन
तन धन
बजे घन घन।
आँख डोर
बहकन
मन पतंग
तड़पन।
उठन शहर भर
नीक लगत
हवा पर
विचरण
लहकन
तन धन
बिखर छम थम।
लुनाई -
साँवरा बदन
कपोल लाल
अधपके जामुन
रस टपकन
अधर मधुर
मधु भर भर
कान लोर
लाल
शरम रम रम
तन धन
सिमट
कहर बन शबनम।
देह
द्वै कुम्भ काम
दृग विचरें
सप्तधाम
कटि कुलीन
नितम्ब पीन
उतरे क्षीण
जैसे
पश्चात मिलन
पतली पीर
सिमटन
तन धन
...
...
धत्त अकिंचन !
सदस्यता लें
संदेश (Atom)