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रविवार, 22 अप्रैल 2012

रूप और प्रात, दुपहर, साँझ, रात

प्रात की लाली बदन पर पोत लूँ
दुपहरी उजाले नयन भर समेट लूँ
साँझ के प्याले अधर रस सोख लूँ।
सज गया जो रूप सुन्दर,
निहार लूँगी।
रात अँधेरी आरसी में,
रूप निहार लूँगी॥

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

तन धन ...अकिञ्चन


यौवन
तन धन
सजे
सन सन।


शोर शोख 
बरजोर बार,
बार लेकिन 
कानों में कन कन 
तन धन
बजे घन घन।


आँख डोर 
बहकन
मन पतंग
तड़पन।
उठन शहर भर 
नीक लगत 
हवा पर
विचरण 
लहकन
तन धन 
बिखर छम थम।


लुनाई -
साँवरा बदन
कपोल लाल 
अधपके जामुन 
रस टपकन 
अधर मधुर 
मधु भर भर
कान लोर
लाल 
शरम रम रम 
तन धन
सिमट 
कहर बन शबनम।  


देह 
द्वै कुम्भ काम
दृग विचरें 
सप्तधाम 
कटि कुलीन 
नितम्ब पीन 
उतरे क्षीण
जैसे  
पश्चात मिलन 
पतली पीर 
सिमटन
तन धन 
...
...
धत्त अकिंचन !