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मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009

कुकविता


तुम्हारे खामोश कान
तुम्हारी बहरी जुबान 
मुझे चेताते हैं - चुप रहो।
लेकिन शायद तुम्हें नहीं पता
खामोशी की बदबू
ठुस्की से भी खराब होती है।
मुझे बदबू से चिढ़ है।
इसलिए 
मुझे चुप नहीं कराया जा सकता !


जब तुम मुझे देखते हो 
तो तुम्हारी आँखों से 
बास निकलती दिखाई देती है।
मैं नाक सिकोड़ता हूँ 
और तुम्हें लगता है कि 
मुझे तुम्हारी बात से इत्तेफाक नहीं!
अरे, इत्तेफाक का सवाल तो सुनने के बाद आता है !
मेरे कान बहरे हैं
और 
जुबान चलती है।


मेरे यहाँ सीधा हिसाब चलता है।


मैं चिल्लाऊँगा - पेट से
मेरी चिल्लाहट समा जाएगी 
तुम्हारी कब्ज ग्रस्त अंतड़ियों में 
और तुम टॉयलेट की ओर दौड़ पड़ोगे
चिंतन करने ? 
नहीं अपनी सड़ांध निकालने। 
तुमने मुझे इसबगोल बना दिया है !


अपने अन्दर की सडाँध को याद रखो
बहुत प्रेम है न तुम्हें उससे? 
लेकिन यह भी याद रखो 
कि 
इसबगोल का यह पैकेट कभी खत्म नहीं होगा !....
सा...