तुम्हारी उंगली पकड़
यहाँ मैंने चलना सीखा ।
पैर कहाँ रखें कैसे रखें
तुमसे सीखा ।
तुमसे हुए जाने कितने सम्वाद
सुलझाते रहे गुत्थियों को।
अचानक इतने चुप क्यों हो गए?
चुप्पी भी ऐसी कि कुरेदने से न टूटे !
....
मौन तुम्हारा अपना वरण है।
मुझे उस पर कुछ नहीं कहना ।
लेकिन मैं अब किसे ढूढूँ
अपना मौन तोड़ने को ?
.....
भीतर का हाहाकारी मौन
जिस किसी के आगे नहीं तोड़ा जाता
अन्ना ! नहीं तोड़ा जाता।