तुम आना जब 
आँखें केवल पुतलियाँ
रह जायेंगी 
कान वायु अवरोध तने
लघु वितान भर 
त्वचा गुरुत्त्व
संघर्ष बाद झूलती खंडहर  
सोई होगी नाभि से
उठती नागिन लपलप  
थक कर मस्तिष्क में।
तुम आना जब 
कटि से नीचे होगा
पक्षाघात और हाथ 
होंगे कर्म कम्पनों
के अवशेष भर। 
तुम थामना तब 
मुझे वैसे ही जैसे
उठाती है माँ 
शिशु को दूध पिलाने, आँचल
छाँव
देना कि इच्छा बची
होगी नि:श्वास ऊष्मा सी 
गाना लोरियाँ जिनमें
होगी गोरियाँ प्रेम भरी 
तत्पर कुमार के मधु
चुम्बन को 
सुन न पाऊँगा लेकिन
अधर होंगे मर्मर
गाने को देहराग मन के
आँगन किल्लोल। 
तुम आना जब 
मैं लूँगा पुनर्जन्म, गाना
सोहर उल्लास भर 
कि तुम्हें मिलेगा
प्रेम एक बार फिर 
भरना सिसकारी उत्सव
एकांत बीच 
वासनाओं को देना
अमरत्त्व वरदान
तुम आना।  
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~गिरिजेश राव~
~गिरिजेश राव~
 
 
यही भावनाएँ मैंने भी व्यक्त की थीं कभी... किंतु यह शब्द नहीं थे! आज आपके शब्दों ने नि:शब्द कर दिया है मुझे! अंतस तक उतर गईं यह पंक्तियाँ!! साधुवाद!
जवाब देंहटाएंमन में गहरे उतरते शब्द ... प्रेम फिर भी रहगा जीवित उनके आने तक ...
जवाब देंहटाएंन जाने कितने हृदयों की मूक व्यथा [चाह]...मर्मस्पर्शी !
जवाब देंहटाएंतुम आना जबमैं लूँगा पुनर्जन्म,
जवाब देंहटाएंगाना सोहर उल्लास भर
कि तुम्हें मिलेगा प्रेम एक बार फिर
:)