गुरुवार, 1 मई 2014

अधिकार

बनाये नहीं जाते
दिये नहीं जाते
लिये नहीं जाते
कुछ अधिकार

बस होते हैं
होते हैं कि
उनके होने से
सब होते हैं
बनाने वाले
देने वाले
लेने वाले

वे ऐसे जुड़ते हैं
क्षिति - भोजन
जल - प्यास
पावक - पेट
गगन -  एकांत
समीर - साँस

करते व्यापार
छीनना चाहते हो
वे अधिकार

कैसे छीनोगे उन्हें?
जो
बनाये नहीं गये
दिये नहीं गये
लिये नहीं गये

वे थे, हैं, रहेंगे
कि तुम्हारा होना भी
उनसे ही है
खुद को खुद से
छीन कर तो देखो
मिटा कर तो देखो

दबंगई गिरहकटी
कुछ मामलों में नहीं चलते
जैसे:
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर
भोजन, प्यास, पेट, एकांत, साँस

8 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो जीने की अनिवार्य शर्तें हैं -इस पर कोई दो मत नही हो सकते .

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  2. नैसर्गिकता का भाव है अधिकार, प्राप्य और प्राप्ति में।

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  3. एकान्त भी ? :)
    एकान्त तो छीना जा सकता है !
    वैसे इस एक शब्द ने कविता बदल दी.

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  4. यहाँ आना सुखी हो जाना है, बहुत सुखी :)

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  5. क्या बात है। लाजवाब लिखा है आपने।

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  6. बिल्कुल दबंगई गिरहकटी कुछ मामलों में नहीं चलते ।

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