शुक्रवार, 24 मई 2013

धूमिलोत्तर : लोहे का स्वाद


लोहे का स्वाद लोहार से न पूछो जो गढ़ता है
लोहे का स्वाद घोड़े से न पूछो जो पहनता है
लोहे का स्वाद सवार से न पूछो जो चढ़ता है।
लोहे का स्वाद उस ईमानदार से पूछो जो
कार्बन प्रतिशत सीमा से बाहर होने पर भी
ठीक दर्ज करता है, बैच पास कर खुद पर कुढ़ता है
चुप्पी का तेजाब मुँह में रख गलता है
और हर शाम खुद को सांत्वना देने को गीता पढ़ता है।


('लोहे का स्वाद' सुदामा पांडेय 'धूमिल' की अंतिम कविता है। उनसे क्षमा सहित।)


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