सोमवार, 1 अप्रैल 2013

उमसते प्रात में साँवरी

प्रातकी सूख गई,
केश तुम्हारे हुये गीले
नयनों ने चित्र टाँके,
फूल छिटके नील पीले।

अधर लाली खुल गई,
श्वेत बेला झाँकती
गन्ध मधुरा साँस दहका
निकटता राँधती।


साँवरे कपोल मस्तक,
ओस फूटे स्वेदकूप
रक्त चन्दन ऊष्ण उमगे
रूपसी रूप रूप।

थम गयी कामना,
निहारती आराधना
देह भीगे ग्रीष्म सी,
शीत सम सम्भावना।
 
   

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