बुधवार, 22 दिसंबर 2010

नहीं होती

यूँ बेतहाशा भागने से कवायद नहीं होती 
रोज घूँट घूँट पीने से तरावट नहीं होती।

चुप रहते जब कहते हो क्या खूब कहते हो 
लब हिलते हैं, आवाज सी रवायत नहीं होती।

ज़ुदा हुआ ही क्यों कमबख्त हमारा इश्क़ 
आह भरते हैं हम और शिकायत नहीं होती।

रीझते हो रूठने पर, मनाना भूल जाते हो 
यूँ मान जाते हम तो ये अदावत नहीं होती।

अदावत ऐसी कि बस तेरा नाम लिए जाते हैं 
दुनिया में ऐसे इश्क पर कहावत नहीं होती।  

9 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो हम जैसे परवाने हैं जिन्होने इश्क को इतनी बेपनाह इज्ज़त दे दी है।

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  2. Rav Sahab,

    ek aur sundar rachna, badhai.

    bas urdu ya parsi ke jo shabd ap likha karte hain, agar unke hindi ya english main mayne bhi likh dein to ham jaise kuchh kam padhe likhon ko bhi puri kavita samajh aa jaye.

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  4. ज़ुदा हुआ ही क्यों कमबख्त हमारा इश्क़
    आह भरते हैं हम और शिकायत नहीं होती।


    बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !

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  5. यूँ बेतहाशा भागने से कवायद नहीं होती
    रोज घूँट घूँट पीने से तरावट नहीं होती।


    यूँ रोज रोज पी कर ही तो - दिल यूँ ही बहलाते हैं.....
    तू तो भूल गई थी हमको - हम यादों की शमा जलाते हैं.

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  6. यूँ बेतहाशा भागने से कवायद नहीं होती
    रोज घूँट घूँट पीने से तरावट नहीं होती।

    खूबसूरत गजल .........

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