tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post6873289282427894688..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: ... मैंने तुम्हें पढ़ना छोड़ दिया हैगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-7869059104064412002010-10-17T21:04:50.932+05:302010-10-17T21:04:50.932+05:30कुछ बताएगें भी माजरा क्या है कविता की प्रेरणा कौन ...कुछ बताएगें भी माजरा क्या है कविता की प्रेरणा कौन है ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-6771689767337445792010-10-13T14:29:33.370+05:302010-10-13T14:29:33.370+05:30phir bhi main apko padh raha hoon...
uttam rachna...phir bhi main apko padh raha hoon...<br /><br />uttam rachna.<br />:)Unknownhttps://www.blogger.com/profile/00193683374558166409noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-86679920394061798452010-10-13T10:26:35.355+05:302010-10-13T10:26:35.355+05:30बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्य...बहुत पसन्द आया<br />हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद<br />बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-42709383114215419142010-10-13T02:23:00.575+05:302010-10-13T02:23:00.575+05:30पत्रों को न जला पाने की व्यथा पर जाने कितने गीत कि...पत्रों को न जला पाने की व्यथा पर जाने कितने गीत कितनी कवितायें लिखी गईं लेकिन इस कविता में जो शब्दों भावों और उनकी भौतिकता के साथ आत्मीयता का सहज सम्बन्ध दिखाई देता है वह उन सारी कविताओं के बनावटीपन को खारिज कर देता है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-83977802491657432912010-10-11T08:38:38.100+05:302010-10-11T08:38:38.100+05:30बहुत गहन ,,,, वाह!बहुत गहन ,,,, वाह!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-52615889022811620642010-10-11T08:27:48.557+05:302010-10-11T08:27:48.557+05:30इन पंक्तियों के गहरे अर्थ समझने की कोशिश कर रहा हू...इन पंक्तियों के गहरे अर्थ समझने की कोशिश कर रहा हूँ।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-87891520505758969432010-10-11T01:46:52.665+05:302010-10-11T01:46:52.665+05:30"मैंने तुम्हें पढ़ना छोड़ दिया है,
नहीं देख स..."मैंने तुम्हें पढ़ना छोड़ दिया है,<br />नहीं देख सकता तुम्हें यूँ चुकते हुए।<br /><br /><br /><br /><br /><br />hmmmmmmm............किसके लिये है ?????अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-53601107031853898952010-10-09T23:09:27.545+05:302010-10-09T23:09:27.545+05:30@
... मैंने तुम्हें पढ़ना छोड़ दिया है,
नहीं देख ...@<br />... मैंने तुम्हें पढ़ना छोड़ दिया है, <br />नहीं देख सकता तुम्हें यूँ चुकते हुए। <br />तुम्हारे वे शब्द जिनमें जीवन टहलता था, <br />प्रसिद्धि के गलियारों में भटक गए हैं।<br />मेरे घुटने अब दर्द करते हैं, <br />तुम्हारे साथ नहीं चल सकता। <br /><br />...प्रसिद्धि अपनी पूरी कीमत वसूलती है. सबसे पहला शिकार होती है-- रचनात्मकता. रचनात्मकता के सहारे मिली प्रसिद्धि को बचाए रखने के लिए जो भी कुछ किया जा रहा है वह टोटका ज्यादा है, सृजन कम.rajani kanthttps://www.blogger.com/profile/01145447936051209759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-71601811193609523882010-10-09T21:49:35.625+05:302010-10-09T21:49:35.625+05:30ये लाइनें मन के अजीब से अंतर्द्वन्द्व को अभिव्यक्त...ये लाइनें मन के अजीब से अंतर्द्वन्द्व को अभिव्यक्त करती हैं<br />" तब जब कि मेरे मन ने कहा है - <br />"तुम उससे जलते हो।" <br />मेरे हाथ में तुम्हारे वही छ्लकते पत्र हैं <br />इन्हें आज तक क्यों नहीं जला पाया?"<br />सच में बहुत अच्छी लगी कविता.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-89032164659689233632010-10-09T14:48:23.184+05:302010-10-09T14:48:23.184+05:30नयेपन की धार थी, जो छोड़ चुके तुम,
सत्ता के मंचों ...नयेपन की धार थी, जो छोड़ चुके तुम,<br />सत्ता के मंचों से नाता जोड़ चुके तुम।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-26125859842183322882010-10-09T14:31:52.486+05:302010-10-09T14:31:52.486+05:30आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी... विशेष कर पहला पैरा...आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी... विशेष कर पहला पैरा... उदय प्रकाश ने कहा है ९९ प्रतिशत चमकदार नाम अब गतिया लेखन कर रहे हैं.. सच में एक दौर ऐसा आता है जब प्रसिध्ही के कारण उनको ज्यादा पढ़ा जाता है जबकि गुणवत्ता और मौलिकता खोटी जाती है.. आपने उसे सुन्दर शब्द दिए हैं.. अंतिम पैरा तो "तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे" की याद दिला रहा है... देवेन्द्र जी की भी टिपण्णी सुन्दर है.सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-14088888018762227602010-10-09T14:07:20.745+05:302010-10-09T14:07:20.745+05:30इसे पढ़कर एक गीत याद करने का प्रयास कर रहा हूँ...श...इसे पढ़कर एक गीत याद करने का प्रयास कर रहा हूँ...शायद 'शिव अम्बर ओम' का लिखा है...ठीक से याद नहीं..<br /><br />कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित<br />सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिंत रहना<br /><br />धुंध डूबी घाटियों में इंद्रधनु तुम<br />छू लिए लिए नत भाल पर्वत हो गया मन<br /><br />बूंद भर जल बन गया पूरा समुंदर<br />यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिंत रहना<br />...शायद प्रेम पाश से मुक्ति का यही मार्ग है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com