tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post1378750194957244726..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: आखराँ न होता कोई आखिरी मंजरगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-8112667465851490402017-05-17T02:38:38.710+05:302017-05-17T02:38:38.710+05:30आभार!आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-77046572134551039042010-12-22T21:46:27.003+05:302010-12-22T21:46:27.003+05:30एक गमछे से पोंछेंगे हाथ और आँखें
चल देंगे धीमे से ...एक गमछे से पोंछेंगे हाथ और आँखें<br />चल देंगे धीमे से हँसते ।<br />...मन डूब गया इन पंक्तियों में। मासूम भावनाओं की इतनी सहज अभिव्यक्ति कम ही पढ़ने को मिलती है। <br />...बहुत खूब। वाह!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-87321488986633445832010-01-16T16:13:03.218+05:302010-01-16T16:13:03.218+05:30"चलो छोड़ो ये मोल तोल की बातें
देखो पीपल तले ..."चलो छोड़ो ये मोल तोल की बातें<br />देखो पीपल तले वो भुट्टे की भुनाई<br />खाएँगे भुट्टे और पिएँगे एक लोटे पानी<br />एक गमछे से पोंछेंगे हाथ और आँखें<br />चल देंगे धीमे से हँसते ।"<br /><br />शुरु करके कैसे अंत में यह कैसी कविता बनाई ! <br /><b>@गमछे से पोंछेंगे हाथ और आँखें <br />चल देंगे धीमे से हँसते ।" </b>--एकदम से सिसकाय दिये भइया ! <br />पता नहीं हम उस संवेदना तक पहुँचे कि नहीं पर...<br /><br />"फिर उसी राहगुजर पर शायद<br />मिल सकें हम कभीं मगर, शायद !"<br />ये आपके "धीमे से हँसते" और इस "शायद" की टोन एक ही तो नहीं ! <br />पता नहीं ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-35883275662483736372010-01-16T03:15:08.214+05:302010-01-16T03:15:08.214+05:30"हो जाती है बात जो होनी है होती
ग़र दिल के को..."हो जाती है बात जो होनी है होती<br />ग़र दिल के कोने कहीं लगावट है होती।<br />"तुम न कहते तो जाने क्या बात होती<br />जो कह गए हो तो जाने क्या बात होगी<br />जो कहना था न तुम कह पाए न हम कह पाए<br />अब इशारों इशारों में क्या बात होगी ।"<br /><br />अच्छी लगी ये पंक्तिया !अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-61303669215004130832010-01-07T20:11:01.798+05:302010-01-07T20:11:01.798+05:30@ अनुराग भैया
अक्षर -> आखर -> आखराँ - अक्षर...@ अनुराग भैया<br /><br />अक्षर -> आखर -> आखराँ - अक्षरों में, कथन में, बातों मेंगिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-74387939333749583262010-01-07T19:57:05.567+05:302010-01-07T19:57:05.567+05:30बहुत गहराई है कविता में..... बहुत अच्छी लगी....बहुत गहराई है कविता में..... बहुत अच्छी लगी....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-81156784951776040702010-01-07T12:50:58.361+05:302010-01-07T12:50:58.361+05:30बहुत सुन्दर रचना है।
मानो कि वो बहुत बात होगी
न ह...बहुत सुन्दर रचना है।<br /><br />मानो कि वो बहुत बात होगी<br />न होंगे गलीचे न होंगे वो मंजर -<br />मैंने कहा था कि नहीं ?<br />न होता आखराँ कोई आखिरी मंजर।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-64948825787454414682010-01-07T11:53:30.215+05:302010-01-07T11:53:30.215+05:30चलो छोड़ो ये मोल तोल की बातें
देखो पीपल तले वो भुट...चलो छोड़ो ये मोल तोल की बातें<br />देखो पीपल तले वो भुट्टे की भुनाई<br />खाएँगे भुट्टे और पिएँगे एक लोटे पानी<br />बहुत सुन्दर अब तो भुट्टों का सीजन भी गया। आपने भुट्टों की तलब जगा दी । सुन्दर रचना बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-55216069046648615262010-01-07T06:52:50.815+05:302010-01-07T06:52:50.815+05:30ढूढ़ा किए दौरे जहाँ कि तिलस्म का राज खुले
देख लेते...<b>ढूढ़ा किए दौरे जहाँ कि तिलस्म का राज खुले<br />देख लेते तुम्हारे अक्षर तो यूँ क्यूँ भटकते?<br />न भटकते तो कैसे होती हासिल ये शोख नजर<br />देखा तो पाया, आखराँ न होता कोई आखिरी मंजर।<br /></b><br />"आखराँ" का अर्थ तो बता दो भाई! कविता कई बार पढ़ चुका हूँ. हर बार यहीं अटक जाता हूँ. टिप्पणी करने से पहले ठीक से समझना चाहता हूँ.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-17616535017927556892010-01-07T06:32:01.989+05:302010-01-07T06:32:01.989+05:30"देखा तो पाया, आखराँ न होता कोई आखिरी मंजर।&q..."देखा तो पाया, आखराँ न होता कोई आखिरी मंजर।"<br />मैं पहिले समझ गया था की कवितवा इहीं ठावं खत्म होई -<br />और कुंवर बेचैन का एक थो गीत याद हो आया -<br />एक ही ठांव पे ठहरोगे तो थक जाओगे<br />धीरे धीरे ही सही राह पे चलते रहिये ...<br />होके मायूस न यूं ही शाम से ढलते रहिये .....<br />चल भाई आगे चल .....Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-20374683414272505552010-01-07T04:09:19.221+05:302010-01-07T04:09:19.221+05:30धन्य भये महाराज...बड़ा गहन उतरे....
मगर
चलो छोड़...धन्य भये महाराज...बड़ा गहन उतरे....<br /><br /><br />मगर<br /><br />चलो छोड़ो ये मोल तोल की बातें<br />देखो पीपल तले वो भुट्टे की भुनाई<br />खाएँगे भुट्टे और पिएँगे एक लोटे पानी<br /><br /><br />ई भुट्टे के बाद एक लोटा पानी..बड़ा जोर जुकमिया जायेंगे..हमें तो बचपन से मना किया गया कि भुट्टे के बाद पानी नहीं.. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-6315491519163181992010-01-07T03:43:52.230+05:302010-01-07T03:43:52.230+05:30ना भटकते तो कैसे मिलती ये शोख नजर ....
भटकने का अच...ना भटकते तो कैसे मिलती ये शोख नजर ....<br />भटकने का अच्छा बहाना ढूँढा ..<br />थके पांवो के नीचे सरकते गालीचे<br />कहीं जिंदगी ही तो नहीं ....<br />पीपल के तले भुट्टे की भुनाई और फिर साथ खाना<br />अच्छा खासा रोमांटिक ख़याल है<br />अब ऐसे में तोल मोल की बाते .....जाने दीजिये ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-34036068118278329422010-01-07T02:54:51.099+05:302010-01-07T02:54:51.099+05:30अब बतावल जावे कि निराकार ब्रह्म से गोठिया रहे हैं ...अब बतावल जावे कि निराकार ब्रह्म से गोठिया रहे हैं कि कोई साकार है ..???<br />:):)<br />हाँ ..मकई की बात में एक ठो गीत याद आया है ...<br />मकईया रे तोहर गुना गवलो न जाला<br />भात लागे लेदेरे फेदर, रोटी सक्कर पाला<br /><br />बहुत सुन्दर कविता....आप ऐसा भी लिखते हैं...??स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.com