tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post1291739358331736560..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: पुरानी डायरी से - 20: सुलगनगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-45675784520196969562011-01-02T06:40:58.186+05:302011-01-02T06:40:58.186+05:30किसी खास के अनुरोध पर ....! अनुरोध करने की संभावना...किसी खास के अनुरोध पर ....! अनुरोध करने की संभावना तलाश रहा हूँ...। वही होगा जिसने उस समय इसे पढ़ा होगा...। मतलब बाल सखा या सखे...जैसे मनु की उर्मी ? ...छोड़िए जाने दीजिए..मुझे इससे क्या। <br />उस अवस्था में विज्ञान के विद्यार्थी द्वारा हिंदी का इतना अच्छा प्रयोग सचमुच अचंभित कर देता है। यदि आप किसी विद्यालय में हिंदी के अचारज होते तो हिंदी का बड़ा भला होता।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-50391055114242068432010-12-31T20:32:47.604+05:302010-12-31T20:32:47.604+05:30कविता के बचपने की रचना से परिचय कराने के लिए धन्यव...कविता के बचपने की रचना से परिचय कराने के लिए धन्यवाद.rajani kanthttps://www.blogger.com/profile/01145447936051209759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-41279167938419948762010-12-31T12:56:57.966+05:302010-12-31T12:56:57.966+05:30गज़ब की रचना है ……………आज यही हाल है ।गज़ब की रचना है ……………आज यही हाल है ।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-21215348851106983152010-12-31T08:35:56.691+05:302010-12-31T08:35:56.691+05:30पता नहीं क्यों, शब्द चयन के बचपने और विचारों का बह...पता नहीं क्यों, शब्द चयन के बचपने और विचारों का बहकना कभी कभी वहाँ तक ले जाते हैं जहाँ सधे सधाये लेख नहीं पहँच पाते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-42140463512951089062010-12-31T08:28:55.184+05:302010-12-31T08:28:55.184+05:30@ अविनाश जी,
आप की उदारता है वरना मुझे इस कविता म...@ अविनाश जी, <br />आप की उदारता है वरना मुझे इस कविता में छायावादी कवियों की नकल दिखाई देती है। महादेवी वर्मा, दिनकर आदि। <br />हाँ मेरी लिखावट अवश्य बहुत सुन्दर थी। यह तो उस जमाने की घसीट है। छठवीं कक्षा तक जी निब और सरकंडे की कलम पर हमलोगों के हाथ सधे थे। अब तो अपनी ही लिखावट देख कर रोना आता है। <br />लगता है कि बंगाल में परम्परा अभी भी सुरक्षित है। मैंने किसी बंगाली की लिखावट भद्दी नहीं देखी।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-14707188687679316272010-12-31T04:24:16.523+05:302010-12-31T04:24:16.523+05:30@कैसा था वह समय! आह!!... किसी की मुस्कुराहटों पे ह...@कैसा था वह समय! आह!!... किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार<br /><br />और उस समय एक कवि का जन्म हो रहा होगा. आह !! धीरे धीरे ही सही सब _विताएं सामने आएँगी.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-48798502189447269122010-12-31T01:16:10.007+05:302010-12-31T01:16:10.007+05:30'लवलीन प्राण की दीपशिखा'
'विद्रोह कर प...'लवलीन प्राण की दीपशिखा'<br />'विद्रोह कर पुंसत्व जगा दे, अपने अंतर के गह्वर में।'<br /><br />ऐसा,ग्यारहवीं में?<br />वाहवाही करूँ या साधुवाद? :)<br /><br />'बुझी बुझी सी राख से भी<br />जा वह्नि का तू तेज ले ले<br />पुष्प गर्विता साख से भी<br />जा कंटकों की सेज ले ले। '<br /><br />इनके बाद तो पूरा पढना ही था।<br /><br />इस कविता के लिए (लिखने और पोस्ट करने दोनों के लिए) आप का आभार।<br /><br />लिखावट कुछ ज्यादा ही अच्छी है। :)Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.com