tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post1271687354545466414..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: ...क्षितिज नहींगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-72546509636084334662010-09-04T20:54:54.130+05:302010-09-04T20:54:54.130+05:30तुम मिली।
अशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई...तुम मिली।<br />अशेष<br />सभी कामनाएँ।<br />मेरी दृष्टि में<br />अब कोई क्षितिज नहीं।<br /><br />बेहतर पंक्तियां....अगली कड़ी...वाह...रवि कुमार, रावतभाटाhttp://ravikumarswarnkar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-25374881437337872952010-09-04T07:58:24.709+05:302010-09-04T07:58:24.709+05:30@ अभिषेक जी,
सम्भवत: रविवार को अगली कड़ी आ रही है।...@ अभिषेक जी,<br />सम्भवत: रविवार को अगली कड़ी आ रही है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-54200519266852211822010-09-03T23:20:45.538+05:302010-09-03T23:20:45.538+05:30मैं समझ रहा हूँ प्रेमपत्र लिखते-लिखते आप कहाँ बह र...मैं समझ रहा हूँ प्रेमपत्र लिखते-लिखते आप कहाँ बह रहे हैं :) लेकिन उसे पूरा... सॉरी आगे बढाते तो रहिये !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-72034292933378606652010-09-03T18:44:50.758+05:302010-09-03T18:44:50.758+05:30तुम मिली।
अशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई...तुम मिली।<br />अशेष<br />सभी कामनाएँ।<br />मेरी दृष्टि में<br />अब कोई क्षितिज नहीं।<br /><br />अब कोई शब्द शेष नहीं, व्यक्त क्या करूँ?प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-48012157184269618352010-09-03T11:34:07.340+05:302010-09-03T11:34:07.340+05:30अच्छी पंक्तिया है ...
......
( क्या चमत्कार के लि...अच्छी पंक्तिया है ...<br /> ......<br />( क्या चमत्कार के लिए हिन्दुस्तानी होना जरुरी है ? )<br />http://oshotheone.blogspot.comओशो रजनीशhttps://www.blogger.com/profile/02490589981699767958noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-74857952165901874642010-09-03T10:16:16.344+05:302010-09-03T10:16:16.344+05:30सच्चा प्यार ही वो है जो कामना मुक्त कर दे। बहुत सु...सच्चा प्यार ही वो है जो कामना मुक्त कर दे। बहुत सुन्दर रचना है। आभार।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-67897894821702225842010-09-03T09:23:37.192+05:302010-09-03T09:23:37.192+05:30आज आपकी कविता बहुत मन भायी है...आपकी प्रेरणा को न...आज आपकी कविता बहुत मन भायी है...आपकी प्रेरणा को नमन...<br />वैसे ई लाल सीढ़ी का, का चक्कर है ...कह दीजियेगा तो...<br />सच में बहुत सुन्दर लगी कविता.....स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-14825478663012350052010-09-03T09:11:57.439+05:302010-09-03T09:11:57.439+05:30बीती विभावरी जाग री ,,
राम का पुरातात्विक साक्ष्य ...बीती विभावरी जाग री ,,<br />राम का पुरातात्विक साक्ष्य आने वाला है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-52321540883135404812010-09-03T08:50:10.651+05:302010-09-03T08:50:10.651+05:30बड़ी ही प्यारी रचना.बड़ी ही प्यारी रचना.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-39395561445348897802010-09-03T08:30:28.684+05:302010-09-03T08:30:28.684+05:30अद्भुत!अद्भुत!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-57356773180154354912010-09-03T08:08:18.076+05:302010-09-03T08:08:18.076+05:30किसी -किसी का मिलना ऐसा ही भर देता है ...
फिर कोई ...किसी -किसी का मिलना ऐसा ही भर देता है ...<br />फिर कोई कामना नहीं , कोई लालसा नहीं ...<br />पास नहीं ,फिर भी दूर नहीं ...<br /><br />तुम मिली।<br />अशेष<br />सभी कामनाएँ।<br />मेरी दृष्टि में<br />अब कोई क्षितिज नहीं।<br />मीरा आपकी इन पंक्तियों में ही तो समाई है ....<br />कल्पना हो तो भी !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-51214342958969221402010-09-03T07:42:04.722+05:302010-09-03T07:42:04.722+05:30..यह पवित्र बेला। सुखानिलोsयं काल:। कोई विश्वामित्.....यह पवित्र बेला। सुखानिलोsयं काल:। कोई विश्वामित्र नहीं जो रवि ऊर्मियों की प्रतीक्षा में ऊषा से अमृत बिखेरने को कहे। नक्षत्रों की गुप्त मंत्रणा जारी है और ऊषा आँचल में मुँह छिपाए कहीं फिर रही है। हर तरफ है बस तुम्हारे प्रेम की धुन्ध। बरस रहा है – टप, टप, टप। ..<br />..ऐसे में कविताएँ झरती हैं तो कोई अचरज नहीं, बारिश की बूदें के साथ..टप, टप, टप।<br />..बहुत सुंदर।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-86517087661103403042010-09-03T07:17:47.094+05:302010-09-03T07:17:47.094+05:30तुम मिली।
अशेष
सभी कामनाएँ।
मेरी दृष्टि में
अब कोई...तुम मिली।<br />अशेष<br />सभी कामनाएँ।<br />मेरी दृष्टि में<br />अब कोई क्षितिज नहीं।<br />Bahut Sundar Girijesh ji !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-49065802873464183942010-09-03T07:09:20.819+05:302010-09-03T07:09:20.819+05:30दुविधा से बाहर आकर एक मार्ग (सत्य का) तो पकडना ही ...दुविधा से बाहर आकर एक मार्ग (सत्य का) तो पकडना ही पडेगा। अब चीन के बारे में क्या कहा जाये? ओशो के बारे में ज़रूर कह सकता हूँ "नो कमेंट्स"। बचीं मीरा, वे तो प्रभुमय ही हैं, अराध्य हैं। उनकी सिर्फ एक बात मुझे भी रखनी है कभी।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-14228264660050466912010-09-03T06:50:06.937+05:302010-09-03T06:50:06.937+05:30आचार्य रजनीश ने कहीं एक चीनी चित्रकार का उल्लेख कि...आचार्य रजनीश ने कहीं एक चीनी चित्रकार का उल्लेख किया है। वह चित्रकार अपने चित्र पर इतना मुग्ध हुआ कि उसी में खो गया। हाड़ मास कुछ न बचा। <br />... कहते हैं बावरी मीरा भी अपने कान्हा की प्रतिमा में समा गई। <br />मेरे मस्तिष्क के दो भाग हैं। एक कहता है कि यह सब कोरी गप्प है। दूसरा कहता है - आह! क्या बात है। काश! ऐसा फिर कभी कहीं हो पाता।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com