tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post1933431026508093746..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: अपनेपन की ठगाई !गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-13495197709809312002010-07-25T08:11:19.580+05:302010-07-25T08:11:19.580+05:30सुंदर ठगाई!सुंदर ठगाई!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-25347235021582895242010-07-25T01:24:53.897+05:302010-07-25T01:24:53.897+05:30कविता लाजवंती की लज्जा की तरह देर से अपने अर्थ खोल...कविता लाजवंती की लज्जा की तरह देर से अपने अर्थ खोलती है..और तब ही अपनेपन की ठगाई का अर्थ समझ आता है..हालाँकि कितना समझ पाया नही जानता..मगर जो भी है जीवन की, रिश्तों की विडम्बना है..और जीवन ऐसी विडम्बनाओं से बना है....क्या पता!!अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-36877913009565076912010-07-22T07:15:58.565+05:302010-07-22T07:15:58.565+05:30तीसरी बार पढने पर रिश्ते बदलने वाली बात समझ में आई...तीसरी बार पढने पर रिश्ते बदलने वाली बात समझ में आई. और फिर प्रेम कहानी... वेल ऐसे अपनेपन के लिए रिश्ते तो बदलने ही पड़ेंगे ! हाँ 'तुम दोनों ' की समझ और अपनेपन की बहुत जरुरत है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-19230070073740375562010-07-21T22:12:25.924+05:302010-07-21T22:12:25.924+05:30अक्सर विवाहित जीवन के कई अंशों में इस तरह अपनेपन क...अक्सर विवाहित जीवन के कई अंशों में इस तरह अपनेपन की ठगाई देखी जाती है। पत्नी से कहता हूँ टिफिन में चार रोटी ही रखना ज्यादा नहीं....पत्नी कहती है हां वही रखा है......। दोपहर में ऑफिस के दोस्तों के बीच जब टिफिन खोला जाता है तो पाँच रोटियाँ निकलती हैं। <br /><br /> यह और इस तरह की ठगाई का आनंद ही अलग होता है :) <br /><br /> सुंदर कविता।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-41182556233977482512010-07-21T20:21:38.292+05:302010-07-21T20:21:38.292+05:30बहुत पहेलियाँ बुझते हो राव साहब कविता में ... हम त...बहुत पहेलियाँ बुझते हो राव साहब कविता में ... हम तो आख़री तक दिमाग़ ही लगाते रहे ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-82109683526805629192010-07-21T08:51:22.532+05:302010-07-21T08:51:22.532+05:30अपनेपन की ठगाई
कभी समझ न आई।अपनेपन की ठगाई<br />कभी समझ न आई।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com