tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post1063458598503214784..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: स्त्री! गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-14076817849810986762012-12-18T09:20:32.673+05:302012-12-18T09:20:32.673+05:30अनूठी कविता, अनूठा दर्शन..दम है।अनूठी कविता, अनूठा दर्शन..दम है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-61362459821763108032012-12-01T08:59:51.685+05:302012-12-01T08:59:51.685+05:30आप तो सारा सिस्टम उलटने की तैयारी में हैं।आप तो सारा सिस्टम उलटने की तैयारी में हैं।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-23382579341637314542012-11-24T10:12:44.626+05:302012-11-24T10:12:44.626+05:30अच्छा! अच्छा! गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-75507529039789811062012-11-24T09:58:23.922+05:302012-11-24T09:58:23.922+05:30किसी को पूर्णता नहीं दी, पूर्णता के बीज एक दूसरे म...किसी को पूर्णता नहीं दी, पूर्णता के बीज एक दूसरे में ही छिपा दिये..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-3759617505950912482012-11-23T11:28:19.841+05:302012-11-23T11:28:19.841+05:30KYAA BAAT HAI!KYAA BAAT HAI!गंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-28724970580667240432012-11-23T09:10:42.153+05:302012-11-23T09:10:42.153+05:30.
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कहा देवों ने
माँ को नमन करो
तुमने देखा तिर....<br />.<br />.<br /><b>कहा देवों ने <br />माँ को नमन करो <br />तुमने देखा तिरस्कार से <br />बन्द यह वमन करो <br />सृजन करो! <br /><br /><br />शब्द छल <br />वाक्य छल <br />व्याकरण छल... <br />मैं गढ़ता गया छल छल छल <br />तुम रोती गयी छल छल छल <br />आज भी नहीं भूला हूँ मैं अपना <br />पहला अट्टहास - बल बल बल <br />बलं देहि माता! <br /><br /><br />दो सीधी सादी आँखों की बातों को <br />मैं आज भी नहीं बाँच पाता हूँ।<br />आश्चर्य नहीं कि हर दोष का बीज<br />तुममें ही पाता हूँ।<br />स्त्री!<br />मैं पुरुष, इस विश्व का विधाता हूँ।</b><br /><br /><br />स्त्री!<br />मैं पुरूष<br />सब कुछ होने पर भी<br />तेरे सामने <br />लाचार खुद को पाता हूँ<br />खड़ा नहीं रह पाता हूँ<br /><br />एक बेबस विधाता हूँ...<br /><br /><br />गहरी रचना कविश्रेष्ठ, हर किसी के लिये एक अलग सा अर्थ लिये...<br /><br /><br /><br />...<br /><br />प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-68672779597110179402012-11-23T09:10:31.511+05:302012-11-23T09:10:31.511+05:30मैं पुरुष, इस विश्व का विधाता हूँ। aisa hai kya??
...मैं पुरुष, इस विश्व का विधाता हूँ। aisa hai kya??<br />waise behtareen... naman aapko.. !मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.com