tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post1003381308841877064..comments2023-10-21T21:31:12.751+05:30Comments on कवितायें और कवि भी..: नरक के रस्ते - 4गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-15474478712324800292009-11-22T23:40:07.818+05:302009-11-22T23:40:07.818+05:30शिक्षा भयभीत ही नहीं करती
बनाती है कायर और भीरु भी...शिक्षा भयभीत ही नहीं करती<br />बनाती है कायर और भीरु भी,<br />रोकती है जीने से<br />लेने से सांस भी<br />पर शिक्षा का ये अर्थ भी हमने चुना है<br />कुछ लोग शिक्षा से बन जाते हैं<br />निर्भय निडर दुस्साहसी दुर्दांत<br />समाज के शत्रुपंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-38161764053198168832009-11-22T20:58:05.566+05:302009-11-22T20:58:05.566+05:30Mor Buppa Re... Ittti lumbi Kavita.
Ka Bhaiya. Su...Mor Buppa Re... Ittti lumbi Kavita. <br />Ka Bhaiya. Suii Dhaga le kar Baithe Rahe ka ?कृष्ण मोहन मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/14783932323882463991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-21525546581720072682009-11-22T20:57:44.492+05:302009-11-22T20:57:44.492+05:30वो जो महसूस होता है ...वो शब्दों में उतरने की बेहत...वो जो महसूस होता है ...वो शब्दों में उतरने की बेहतरीन कोशिश....जो कामयाब भी है!Pawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-87558825896643068602009-11-20T18:44:05.079+05:302009-11-20T18:44:05.079+05:30स्वप्न
स्वप्न अनेकों.....
कुछ अर्ध-निद्रा के,
क...स्वप्न<br />स्वप्न अनेकों.....<br /><br /><br />कुछ अर्ध-निद्रा के,<br /><br />कुछ अतृप्त इच्छाएँ....प्रसवरत!<br /><br />दिवास्वप्न तैरते हुए.....<br /><br /><br />स्वप्न समुद्र <br />आलोडित, <br />ज्वार-<br /><br />बिखरते हुए!<br /><br />फेन बनती हुई-<br /><br />गाज बैठ्ती हुई!<br /><br />सर्प-गुंजलक <br />विष-वमन!<br /><br />अंधकार-सर्वत्र <br />स्वप्न समुद्र <br />पुन: आलोडित!<br /><br />और मैं-<br /><br />अर्ध-निद्रित<br /><br />अर्ध-जागृत!गंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-39895110356824676532009-11-19T22:49:24.109+05:302009-11-19T22:49:24.109+05:30Bahut badhiya sahab...Bahut badhiya sahab...Peeyushhttp://www.nainavelimadhushala.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-68767930193386842842009-11-19T09:50:37.944+05:302009-11-19T09:50:37.944+05:30....गुज़र रहे हैं नरक के रस्ते ...
.पढ़ रहे है.......गुज़र रहे हैं नरक के रस्ते ...<br /> .पढ़ रहे हैं ...लगातार..<br /> .बार -बार ...पारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-17728859969159074072009-11-18T21:00:04.509+05:302009-11-18T21:00:04.509+05:30कोई खण्डकाव्य रचा जा रहा है, लगता है ।कोई खण्डकाव्य रचा जा रहा है, लगता है ।विवेक सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06891135463037587961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-55971131839998939472009-11-18T20:34:24.006+05:302009-11-18T20:34:24.006+05:30... प्रभावशाली रचना !!!!... प्रभावशाली रचना !!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-4324647896023313942009-11-18T20:26:07.454+05:302009-11-18T20:26:07.454+05:30@ chitr
नाक थोड़ी सी बड़ी है आपकी ! :) इसकी वजह से...@ chitr <br />नाक थोड़ी सी बड़ी है आपकी ! :) इसकी वजह से ही शायद इस फोटो में वह सेन्स आ रहा है जो आप देना चाह रहे है !अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-59350402383179934522009-11-18T20:23:31.814+05:302009-11-18T20:23:31.814+05:30@ नरक के रास्ते २-
लव सांग आफ जे .अल्फ्रेड प्रूफ्र...@ नरक के रास्ते २-<br />लव सांग आफ जे .अल्फ्रेड प्रूफ्राक !अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-56374075573554648952009-11-18T20:19:12.322+05:302009-11-18T20:19:12.322+05:30यीट्स को तो पढ़ा ही होगा ......उसको भी ऐसे ही आप ...यीट्स को तो पढ़ा ही होगा ......उसको भी ऐसे ही आप की तरह "विजन" आते थे ........"मीयर अनार्की इज लूज्ड.....थिंग्स फाल अपार्ट ......सेंटर कैन नाट होल्ड ! "अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-80536230760825367052009-11-18T20:14:14.330+05:302009-11-18T20:14:14.330+05:30कविता पर अभी कुछ नही कह रहा हूँ .......या कह नहीं ...कविता पर अभी कुछ नही कह रहा हूँ .......या कह नहीं पा रहा हूँ ......थोड़ा वक्त लगेगा ! .....वैसे अब ...धीरे धीरे समझ में आ रहा है की ब्लॉग के टाइटिल में कविताओ के साथ साथ "कवि भी " से क्या तात्पर्य है !अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-57831562555997612942009-11-18T20:10:05.097+05:302009-11-18T20:10:05.097+05:30शिक्षा भयभीत करती है
जो जितना ही शिक्षित है
उतना...शिक्षा भयभीत करती है<br /><br />जो जितना ही शिक्षित है<br /><br />उतना ही भयग्रस्त है।<br /><br />इसको मै अब तक ऐसे सोचता था ......अधिक किताबे व्यक्ति को नपुंसक बना देती है !अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-34924369476335684142009-11-18T08:43:13.825+05:302009-11-18T08:43:13.825+05:30मुझे गुजरने दीजिये इस कविता से । टुकड़ों में नहीं क...मुझे गुजरने दीजिये इस कविता से । टुकड़ों में नहीं कहूँगा । छटपटाहट-सी हो रही है । कैसी? पता नहीं ! आजकल एक दूसरी ही यातना से गुजर रहा हूँ - आपकी दी हुई ! कैसी-अभी बता नहीं सकता ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-76130242859781105772009-11-18T00:15:59.935+05:302009-11-18T00:15:59.935+05:30राव साहब .. मुझे सिर्फ इतना कहना है कि यह आग बढने ...राव साहब .. मुझे सिर्फ इतना कहना है कि यह आग बढने दीजिये .. आपके भीतर का कवि जाग गया है । कई बार निराशा होती है ऐसा लगता है कि हम वह सब नहीं हासिल कर पा रहे हैं जो हम चाहते है जिसे लिख लिख कर हमने ढेर लगा दिया है ..और ऐसी स्थिति मे निराशा भी उपजती है लेकिन यह कवि ( जो वास्तव मे कवि है ) बहुत जीवट किस्म का होता है .. वह न आउट्साइडर बनता है न आत्महत्या करता है बस लिखे जाना उसकी नियति है । अभी चलने दीजिये जल्दी ही मै भी आ रहा हूँ लम्बी कविता के साथ ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-28425245687939848892009-11-18T00:09:09.885+05:302009-11-18T00:09:09.885+05:30"निकल पड़ता है टाउन की ओर
जाने कितने रुपए बचा..."निकल पड़ता है टाउन की ओर<br />जाने कितने रुपए बचाने को <br />तीन किलोमीटर जाने को<br />पैदल। " <br />एक स्वयं से जुडी हुई लाइन नहीं मिलती तो आज निशब्द ही निकल गया होता इस रास्ते से !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-54066260052268896712009-11-18T00:01:49.654+05:302009-11-18T00:01:49.654+05:30सबसे बडी विशेषता लम्बी कविता की है कि पढना शुरू क...सबसे बडी विशेषता लम्बी कविता की है कि पढना शुरू कर दो तो अंत में पहुंचा कर ही रुकने देती है । पढते हुए ऐसा लगता है जैसे कोई अर्धचेतन अवस्था में सतत बोल रहा हो । एक समय के यथार्थ का दस्तावेज है यह जिसे हम महसूस करते कविता के साथ चलते हुए । <br />घुटन और बेचारगी और मुर्गे बनकर , पिटपिटाकर बडी हुई , अतीत के दामन में सिर छुपाये यथास्थितिवादी पीढियॉं । चाहे जितनी भी तकलीफ दे पर यह एक सच है ।अर्कजेशhttp://www.arkjesh.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-7555223603785023462009-11-17T23:55:37.206+05:302009-11-17T23:55:37.206+05:30गिरिजेश जी,
आपके अवचेतन के सरोकार ज़्यादा व्यवस्थित...गिरिजेश जी,<br />आपके अवचेतन के सरोकार ज़्यादा व्यवस्थित और स्पष्टता के साथ उभर कर आ रहे हैं।<br />भले ही यह आपका एकान्तिक आत्मालाप सा लगता है, या यूं कहें कि आपने इसे जानबूझ कर यह रूप दिया है।<br /><br />आपकी चेतनता कहीं मुक्तिबोध की दुरूहता का अतिक्रमण करने की इच्छा रखती है, पर आपका अवचेतन उसी परंपरा से जूझ रहा है।<br /><br />आखिर हमारे चेतन सरोकार, हमारे अवचेतन में ज़्यादा मुखर होते हैं।<br />ज़्यादा मारक होते हैं।<br /><br />यह श्रृंखला आपके आत्ममंथन की अधिक साफ़ तस्वीर पेश कर रही है। अच्छा लगा।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-59854063535755298342009-11-17T22:27:17.170+05:302009-11-17T22:27:17.170+05:30ये भोंपू हैं इसलिए जिन्दगी है। ..
ये भोंपू बहुत स...ये भोंपू हैं इसलिए जिन्दगी है। ..<br /><br />ये भोंपू बहुत सी बातों के अलावा <br /><br />तय करते हैं कि कब घरनी गृहपति से <br /><br />परोसी थाली के बदले <br /><br />गालियाँ और मार खाएगी। <br /><br />कब कोई हरामी मर्द <br /><br />माहवारी के दाग लिए <br /><br />सुखाए जा रहे कपड़ों को देख <br /><br />यह तय करेगा कि कल <br /><br />एक लड़की को औरत बनाना है<br /><br />और वह इसके लिए भोंपू की आवाज से <br /><br />साइत तय करेगा<br /><br />कल का भोंपू उसके लिए दिव्य आनन्द ले आएगा। <br /><br />... और शुरुआत होगी एक नई जिन्दगी की<br /><br />जर्रा जर्रा प्रकाशित मौत की !! <br />हम सोच रहे हैं.......क्या आपकी कलम की तारीफ करने की ताब मुझमें हैं ?<br />शायद नहीं.....क्यूंकि इसकी क्या तारीफ करें....जब मुझे मालूम है तारीफ कम हो ही जायेगी...<br />यह बहुत सच उगलती है....बस उगलने दीजियेगा.......हमेशा..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6189295586546905119.post-5416272370842281502009-11-17T22:13:36.957+05:302009-11-17T22:13:36.957+05:30आचार्य जी हमें शिक्षित जो बना रहे थे !
हमें कायर,...आचार्य जी हमें शिक्षित जो बना रहे थे ! <br />हमें कायर, सम्मानभीरु और सनातन भयग्रस्त बना रहे थे <br />हम अच्छे बच्चे पढ़ रहे थे.... <br />....अन्धे बुद्धों! तुम मानवता के गुनहगार हो<br />तुम्हारे टेंटुए क्यों नहीं दबाए जाते?<br />तुम पूजे क्यों जाते हो?...<br />...कब कोई हरामी मर्द....<br />....राजपथ यथावत<br /><br />राव साहब..!! क्या इतना यथार्थ कविता झेल पायेगी..?<br />पगडण्डी यथावत <br />खड़न्जा यथावत।<br />यथावत तेरी तो ..Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.com